Book Title: Rayansehari Kaha evam Jayasi ka Padmavata
Author(s): Sudha Khavya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 9
________________ १ Jain Education International ६४० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड कराता है ।' विवाह कर जब वे अपने नगर रत्नपुर पहुँचते हैं तो वहाँ भी भव्य स्वागत किया जाता है । पद्मावत में पहले योगी जानकर राजा गन्धर्वसेन इनकार करता है तथा नायक को सूली देता है किन्तु बाद में भाट एवं तोते के द्वारा परिचय देने पर विवाह कर देता है । इनका भी चितौड़ लौटने पर भव्य स्वागत होता है । ४ (२) सती प्रथा - उस समय समाज में सती प्रथा प्रचलित थी। पति की मृत्यु के बाद पत्नी उसके शव के के साथ सती होती थी। इसे दोनों कवियों ने अपने काव्य में स्थान दिया है। रत्नशेखरकथा में प्रयुक्त एक अन्तर्कथा में एक स्त्री अपने विद्याधर पति के मृत शरीर को देखकर शव के साथ चिता में जलकर सती हो जाती है। * पद्मावत में राजा रत्नसेन की मृत्यु के बाद पद्मावती व नागमती दोनों उसके शव के साथ सती होने के लिए चिता पर लेट जाती हैं। इसका वर्णन जायसी ने बड़े मार्मिक शब्दों में किया है। (३) मूर्ति पूजा -- जिनहर्षगणि एक जैन साधु थे । अतः उनके कथा-काव्य में मूर्तिपूजा का विस्तृत एवं रोचक वर्णन है। पूजा का फल, पूजा के प्रकार इत्यादि का बड़ा भावपूर्ण वर्णन किया है। वन में मन्दिर देखकर मन्त्री स्वर्ण पुष्पों से वस्तु पूजा एवं स्तुति द्वारा भावपूजा करता है। रत्नवती भी पति-प्राप्ति के लिए कामदेव की पूजा करती है।" जायसी ने सूफी होते हुए भी मूर्ति-पूजा का वर्णन किया है। नायिका पद्मावती पति-प्राप्ति के लिए शिव की पूजा करती है।" (४) दहेज प्रथा - भारतीय समाज में दहेज प्रथा प्राचीनकाल से प्रचलित है। इसका उल्लेख दोनों कवियों ने अपने ग्रन्थों में किया है। रस्नशेखरकथा में करमोचन के अवसर पर राजा जयसिंह हाथी, घोड़े आदि देते हैं। १० पद्मावत में भी विदाई के समय राजा गन्धर्वसेन अनेक वस्तुएं दहेज में देते हैं। " ७. भौगोलिक विवरण भौगोलिक विवरणों की दृष्टि से भी इनमें अनेकों साम्य हैं। जिनहर्षगणि एवं जायसी का कार्य-क्षेत्र जम्बूद्वीप से लेकर सात समुद्र पार सिंहलद्वीप तक फैला हुआ है। इनमें रत्नपुर, चित्तौड़, सिंहलद्वीप इत्यादि का उल्लेख समान रूप से हुआ है। (१) रत्नपुर - रत्नशेखरकवा का नायक रत्नपुर नगर का राजा है।" जायसी ने मिलौड़ से सिंहलद्वीप तक के मार्ग का वर्णन करते हुए बीच में रत्नपुर नामक नगर का उल्लेख किया है । १३ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने इसे कल्चुरि शासक रत्नदेव की राजधानी विलासपुर से २० मील उत्तर में माना है । १४ (२) चित्तौड़ रत्नशेखरकथा के कर्ता जिनगणि ने चितौड़ में रहकर इस कथा की रचना की जावसी १. रयणसेहरीकहा, पृ० १८ ३. पद्मावत, २६०-२७३ ५. रयणसेहरी कहा, पृ० २२. ७. रयणसेहरीकहा, पृ० ४. २. ही पृ० १०.१ ४. वही, २७५ ६. पद्मावत ६५०. ८. वही, पृ० १४. १०. रयणसेहरीकहा, पृ० १८. १. पद्मावत, २०. ११. पद्मावत ३०३. १३. पद्मावत, १३८ ८-७. १२. रयणसेहरीकहा, पृ० १ २. १४. पद्मावत - वासुदेवशरण अग्रवाल - १३८ चौपाई की टिप्पणी, पृ० १३५. १५. रमनसेहरीकहा, गावा, १४९. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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