Book Title: Rayansehari Kaha evam Jayasi ka Padmavata
Author(s): Sudha Khavya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 8
________________ रयणसेहीका एवं जायसी का पद्मावत पद्मावत में पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहा है पद्मावति राजा के बारी पदम गन्ध ससि विधि ओतारी । " २३१३ "रम्भेव साररहिया रम्भा परिमार देवाणं ।" १०२ जायसी ने पद्मावती की भुजाओं का सौन्दर्य इस तरह अंकित किया है"कलियां की जान जोरी।" - ११२२ A कदलीस्तम्भ – रत्नवती के अत्यधिक सौन्दर्य का वर्णन करने के लिए उसके सम्मुख रम्भा को कदली के स्तम्भ के समान सार रहित बताया है सूर्य - रत्नशेखर की तेजस्विता सूर्य बिम्ब से प्रकट की है— "सूरख तेली........१०२ जायसी ने शेरशाह के तेज एवं ओज का प्रदर्शन इस तरह किया है— "सेरसाहि दिल्ली सुलतानू 1 चारि खंड तपइ जस भानू । " - १३०१ If ww..co चन्द्र – यक्षकन्या लक्ष्मी के मुख का सौन्दर्य रत्नशेखरकथा में चन्द्र के बिम्ब से प्रकट किया गया हैपुन्नलायन निही पुन्नचन्द्रवयणा पूओवयार कलिया......." - पृ० ४ पद्मावती के मुख का सौन्दर्य भी चन्द्रबिम्ब से प्रकट किया है “पदमावति में पूनिवं कला । चौदह चाँद उए सिंघला ।" - ३३८।२ -- Commence मेघगर्जन — इस बिम्ब द्वारा जिनहर्षगणि ने वाद्यों की तीव्र आवाज को बताया है"नणातूर निवाएवं नमण्डल मे व गज्जयन्तो वन्दि.१० २० पद्मावत में राजा रत्नसेन के क्रोध का चित्र देखिये "सुनि अस लिखा उठा जरि राजा । जानहु देव घन गाजा । " - ४८६ । १ बाण - जिनहर्षगण ने बाण के बिम्ब द्वारा तीक्ष्ण कटाक्षों का वर्णन किया है"अबलाए पुर्ण बिद्धो कस्छ बाणेहि लिक्खेहि।" - पृ० १० पद्मावती की भौंहों से छूटते बाणों के देखिये "भौहें स्याम धनुकु जनु ताना। जासौं हेर मार बिख वाना । " - १०२।१ हंस - रत्नवती की गति को दर्शाने के लिए राजहंस का विम्ब देखिये— "राजहंसी व सलीलं चकम्मयाणी ।" - पृ० १६ पद्मावती में पद्मावती की चाल का चित्र कुछ इस तरह है "हंस लजाइ समुद कहं खेले । लाज गयंद धूरि सिर मेले । ४८४।५ Jain Education International ६३६ इनके अतिरिक्त भी कल्पवृक्ष, इन्द्र, चकोरी, एरावत हाथी आदि बिम्बों के माध्यम से भावों को अभिव्यक्त किया गया है। जिनहर्षगण एवं जायसी ने इन विम्बों के माध्यम से काव्य में सजीवता एवं मामिकता ला दी है। +0+0+0+0 ६. सामाजिक परिवेश उस समय के सामाजिक जीवन की एक झांकी हमें इन काव्यों में देखने को मिलती है । उस समय सती-प्रथा, प्रेम-विवाह, दहेज-प्रथा इत्यादि प्रचलित थी । इनसे हमें उस समय की सामाजिक स्थिति को समझने में सहायता मिलती है। (१) प्रेम-विवाह की स्वीकृति - उस समय समाज में प्रेम-विवाह प्रचलित थे तथा समाज द्वारा। इन्हें स्वीकृति प्राप्त थी । रत्नशेखरकथा में नायक का आगमन सुनकर राजा जयसिंह आकर उसे सादर ले जाता है और नायिका से विवाह For Private & Personal Use Only ● www.jainelibrary.org.

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