Book Title: Rayansehari Kaha evam Jayasi ka Padmavata
Author(s): Sudha Khavya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211813/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत कु. सुधा खाव्या जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर प्राकृत कथा साहित्य के इतिहास में जिनहर्षगणि कृत रयणसेहरीकहा का महत्वपूर्ण स्थान है। भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है । उसमें प्रयुक्त प्राकृत भाषा अत्यन्त सरल है। जैसे-जसे इसकी ओर विद्वज्जनों का ध्यान आकर्षित होगा वैसे-वैसे इसका स्वरूप और भी उज्ज्वल होता जाएगा। जिनहर्षगणि ने इस कथारत्न द्वारा पर्व-तिथियों पर व्रतोपवास, पूजा, पौषध इत्यादि करने से क्या फल प्राप्त होता है ? इसका हृदयहारी वर्णन किया है। मूलत: यह एक प्रेम-कथा है । इसमें प्रेम तत्त्व का मार्मिक चित्रण किया गया है। नायक रत्नशेखर नायिका रत्नवती का सौन्दर्य-श्रवण कर उस पर मुग्ध हो जाता है तथा अनेक कठिनाइयों को झेलने के बाद उसे प्राप्त करता है । इस सुन्दर प्रेम-कथा को प्राकृत भाषा में ही नहीं अपितु कई अन्य भाषाओं-जैसे संस्कृत, गुजराती, अपभ्रंश, हिन्दी आदि में भी ग्रहण किया गया है। जायसी कृत पद्मावत इससे बहुत अधिक प्रभावित काव्य है। इन दोनों काव्यों के साम्य को देखकर कई विद्वानों ने रत्नशेखर कथा को पद्मावत का पूर्व रूप माना है। यह मानने वाले प्रमुख विद्वान हैं-डा. रामसिंह तोमर, डा० शम्भूनार्थी सह, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी, डा० हीरालाल जैन, डा० नेमिचन्द शास्त्री५ इत्यादि । इससे स्पष्ट है कि इन दोनों में कई बातों में गहरा सम्बन्ध है । कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर इन दोनों ग्रन्थों के साम्य पर विचार किया जा सकता है। १. कथावस्तु की तुलना जिनहर्षगणि ने अपने इस कथा काव्य के लिए लोक-प्रचलित कथानक को चुना है। रत्नशेखर कथा एक ऐसी लोक प्रचलित कथा है जिसे कई भाषाओं के कवियों ने अपनाया है। इसका मूल कथा-बिन्दु है–नायक का नायिका के सौन्दर्य-श्रवण से प्रेम विह्वल होना तथा अनेक बाधाओं को पार कर नायक द्वारा नायिका को प्राप्त करना। इस कथा-बिन्दु के आधार पर जिनहर्षगणि ने बहुत ही सुन्दर कथा लिखी है। हिन्दी का महाकाव्य पद्मावत इससे बहुत प्रभावित है । जायसी ने इसी कथानक को ग्रहण किया है। इस मूल कथावस्तु से सम्बन्धित निम्न बातों की इन दोनों काव्यों में समानता दृष्टिगोचर होती है १. डा० रामसिंह तोमर, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, प्रयाग, १६६४ पृ० २७१ २. राजकुमार शर्मा-जायसी और उनका पद्मावत, पद्म बुक कं०, जयपुर, १६६७, पृ० ४७ ३. डा. गुलाबचन्द्र चौधरी, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोधसंस्थान, वाराणसी, १६७६, पृ० ३०७ ४. डा० हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, साहित्य परिषद् भोपाल (म०प्र० शासन) १९६२ पृ० १४८ ५. डा० नेमिचन्द शास्त्री, प्राकृत भाषा एवं साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, तारा पब्लिकेशन्स, १९६६, पृ० ५११ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत (१) सौन्दर्य - श्रवण - रत्नशेखर नायिका के सौन्दर्य का वर्णन किन्नर युगल से सुनकर उस पर मुग्ध होता है ।" पद्मावत का नायक रत्नसेन भी तोते के मुख से नायिका पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन प्रेम-विल होता है । सुनकर (२) सिंहलद्वीप की नायिका - रत्नशेखर की नायिका रत्नवती सिंहलद्वीप के जयपुर नगर के राजा जयसिंह की पुत्री है। पद्मावत की नायिका पद्मावती भी सिंहलद्वीप के ही सलग के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री है।* (३) नायक सिंहलद्वीप से अनभिन्न दोनों काव्यों के नायकों को सिंहलद्वीप अज्ञात है। रत्नशेखर और मन्त्री रत्नदेव यक्ष की सहायता से रत्नवती का पता प्राप्त कर यक्ष को ही सहायता से वहाँ पहुँचते हैं तथा कामदेव के मन्दिर में ठहरते हैं रत्नसेन तोते के मार्गदर्शन में नाव से समुद्र पार कर सिंहलद्वीप पहुँचता है तथा शिव मंडप में रुकता है । (४) नायिका प्राप्ति के लिए योगी बेशरत्नशेखर का मन्त्री नायिका की खोज पूर्वभव की पुत्री लक्ष्मी से विवाह कर यक्ष की सहायता प्राप्त करता है तथा सिंहलद्वीप से योगिनी का रूप धारण कर नायिका का पता लगाता है। तोते के मार्गदर्शन से रत्नसेन स्वयं योगी का वेष धारण कर नाविका की प्राप्ति के लिए निकलता है।" ६३३ (५) सखियों द्वारा नायक का सौन्दर्य वर्णन - रत्नवती की सखी नायक का सौन्दर्य देखकर नायिका से आकर कहती है कि मन्दिर में प्रत्यक्ष कामदेव के समान कोई राजा बैठा है। यह सुनकर नायक को देखने को लालायित नायिका वहाँ जाती है । " पद्मावती की सखियाँ भी स्वामिनी को मन्दिर के पूर्व द्वार पर योगियों के ठहरने एवं उनके गुरु को योगी वेश धारी बत्तीस लक्षण सम्पन्न राजकुमार होने की सूचना देती है। यह सुनकर माविका वहाँ जाती है।" (६) मिलन स्थल - रत्नवती एवं रत्नशेखर का मिलन कामदेव के मन्दिर में होता है ।" रत्नसेन एवं पद्मावती शिव मण्डप में मिलते हैं । (७) वियोग में अग्निप्रवेश - रत्नशेखर मन्त्री द्वारा दी गई सात माह की अवधि समाप्त होने पर नायिका के वियोग में अग्नि प्रवेश करना चाहता है । 3 रत्नसेन भी होश में आने पर नायिका को न देख उसके वियोग में अग्नि में प्रविष्ट होना चाहता है। १. रायावि... २. सुनतहि राजा गा मरुछाई । जानहुं लहरि सुरुज के आई । पेम घाव दुख जान न कोई । जेहि लागे जाने पै सोई ॥ ११६ ॥ १-२ ...जोइसरव्व तग्गयचित्तो झायन्तो न जम्पइ न हसइ न ससइ । — पृ० २ करने जाता है और यक्ष की पहुँचकर रूप-परिवर्तनी विद्या ३. रयणसेहरीकहा- जिनहर्षगणि, सं० मुनि चतुरविजय, आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १६७४, पृ० ६ ४. पद्मावत जायसी, टीका० डा० वासुदेवशरण अग्रवाल, साहित्य सवन, चिरगांव वि० सं० २०१२ २४५२, — , ६. पद्मावत, १६०१४, १६२८-६ ५. रमणसेहरीकहा, पृ० १६ ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १० ८. पद्मावत, १२६।१-६ १०. पद्मावत, १६३३१-६ १२. पद्मावत, १६४/६, १६५।१ ६. रयणसेहरीकहा, पृ० १६ ११. रयणसेहरीकहा, पृ० १७ १३. ............रायाणं च हुअवहस्स परिक्खणं दिन्तं पासई । पृ० १५ जैसे सर गाजा सर यदि तबहि जरा यह राजा । २०५१ १४. . Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ........................................................................... (८) लौटने पर नगर में स्वागत-रत्नशेखर एवं रत्नवती के रत्नपुर आने पर उनका भव्य स्वागत होत है।' चित्तौड़ पहुँचने पर रत्नसेन एवं पद्मावती का भव्य स्वागत होता है। (E) नायक पराक्रम-वर्णन-रत्नशेखर व रत्नसेन दोनों कुशल योद्धा हैं । रत्नसेन कुम्भलनेर के राजा देवपाल पर आक्रमण कर विजयश्री का वरण करता है। रत्नशेखर कलिंगराज पर आक्रमण कर विजय प्राप्त करता है। (१०) नाम साम्य-रत्नशेखरकथा एवं पद्मावत के नायकों के नाम समान हैं । रत्नशेखरकथा के नायक का नाम रत्नशेखर है तथा पद्मावत के नायक का नाम रत्नसेन है। दोनों में लक्ष्मी नामक कन्या का उल्लेख है। रत्नशेखरकथा में मन्त्री मतिसागर की पत्नी एवं यक्ष की पुत्री का नाम लक्ष्मी है। पद्मावत में समुद्र-पुत्री लक्ष्मी का उल्लेख आया है। इस प्रकार कथानक के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि दोनों कथानक बहुत मिलते-जुलते हैं। रत्नशेखरकथा की रचना पद्मावत से पहले हुई थी। अत: इनके साम्य को देखकर यह सम्भावना की जा सकती है कि पद्मावत की रचना से पूर्व जायसी ने रत्नशेखरकथा को अवश्य पढ़ा या सुना होगा। दोनों कवियों ने अपने ग्रन्थ में इस कथानक को इतने रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया है कि उसे पढ़ते हुए पाठक मन्त्र-मुग्ध हो जाता है। २. प्रन्थकारों का व्यक्तित्व जितना साम्य रत्नशेखरकथा एवं पद्मावत की कथावस्तु में है उतना ही साम्य जिनहर्ष एवं जायसी के समय, स्थान, वर्णन-शैली इत्यादि में भी है, इनके प्रमुख साम्य इस प्रकार हैं (१) समय-जिनहर्षगणि एवं जायसी के समय में ज्यादा अन्तर नहीं है। जिनहर्षगणि ने रत्नशेखरकथा की रचना ईस्वी सन् १४५५ (वि० सं० १५१२) में की, जायसी ने पद्मावत की रचना ईस्वी सन् १५४० में की। जिनहर्षगणि ने अपनी कृति में कहीं इसके रचना समय का निर्देश नहीं किया है। इनकी अन्य कृतियों के आधार पर इनका समय १५वीं शताब्दी ठरहता है। जायसी ने अपने काव्य में रचना समय का उल्लेख किया है। उसके आधार पर पद्मावत का रचनाकाल हिजरी संवत् ६४७ अर्थात् ईस्वी सन् १५४० सिद्ध होता है। इस प्रकार इनके समय में अधिक अन्तर नहीं है । (२) स्थान-जिनहर्षगणि ने अपने काव्य में रचना-स्थान का उल्लेख करते हुए लिखा है कि मैंने यह रचना चित्तौड़ में की है। यह राजस्थान में है। जायसी ने भी पद्मावत के रचना स्थान का उल्लेख करते हुए कहा है कि मैंने इसकी रचना जायसनगर में की है। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस स्थान की पहचान रायबरेली के जायस नामक कस्बे से की है ।१ डा. रामचन्द्र शुक्ल, पं० सुधाकर द्विवेदी, डा० ग्रियर्सन, डा० माताप्रसाद गुप्त आदि विद्वान भी यही मानते हैं। ' (३) वर्णन-जिनहर्षगणि एवं जायसी ने अपने ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर प्रवाहपूर्ण शैली में नगर-वर्णन, १. तओ राइणा महया रिद्धीए नयरप्पवेसो कओ।-पृष्ठ १६ २. बाजत गाजत राजा आवा । नगर चहुँ दिसि होई बधावा ।-४२६/१ ३. पद्मावत, ६४५/५ ४. रयणसेहरीकहा, पृ० २५ ५. रयणसेहरीकहा, पृ०८ ६. पद्मावत, ३६७/४ ७. डा० नेमिचन्द शास्त्री, प्राकृत भाषा एवं साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ०५११ ८. पद्मावत, २४१ ६. रयणसेहरीकहा, गाथा १४६, १५० १०. पद्मावत, २३।१ ११. वही, २३ चौपाई की टिप्पणी। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौन्दर्य वर्णन, नगर प्रवेश वर्णन इत्यादि अनेक वर्णन किये हैं जो काव्य को पर्याप्त रोचक एवं मनोरंजक बनाने में सफल हुए हैं । इसके कुछ उदाहरण आगे दिये गये हैं । रयणसेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत ६३५. (४) धर्म - जिनहर्षगणि जैन धर्म के पालक पंचमहाव्रतधारी साधु थे' तथा जायसी संसार से विरक्त सूफी फकीर थे । वैराग्य भावना का दोनों में प्राधान्य है । दोनों सांसारिक भोगों से दूर थे तथा भवसागर से पार होने के लिए धर्माराधना में लगे थे जिनहनि ने स्थान-स्थान पर जैन धर्म में पर्व तिथियों एवं उनके फल का बहुत सुन्दर वर्णन किया है । जायसी ने सूफी प्रेम मार्ग का वर्णन किया है।* 1 (५) गुरु महिमा - १५वीं १६वीं शताब्दी तक गुरु को बहुत महत्त्व दिया जाने लगा था। उस समय गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना जाता था। इससे ये दोनों कवि भी अछूते नहीं रहे। दोनों ने अपने गुरु का उल्लेख बडी श्रद्धा व भक्ति के साथ किया है। जिनहर्षमणि ने अत्यन्त भक्ति के साथ अपनी श्रद्धा के पुष्प गुरु के चरणों में चढ़ाए हैं। जायसी ने भी भाव - भक्ति से स्वयं को गुरु का सेवक मानकर उल्लेख किया है। गुरु के प्रति भक्ति से परिपूर्ण हृदय से गुरु को खेने वाला माना है । वे कहते हैं कि गुरु की कृपा से ही मैंने योग्यता पायी जिससे यह काव्य लिख सका। गुरु के प्रति ऐसी अटूट श्रद्धा देखकर कौन विभोर नहीं हो जाता । (६) ईश्वर - प्रार्थना - ईश्वर के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति भावना जिनहर्षगण एवं जायसी में विद्यमान है। प्रभु भक्ति इनके हृदय में कूट-कूटकर भरी है। जिनहर्षगण ने भगवान महावीर के चरण-कमलों में प्रणाम करके अपने कथा-ग्रन्थ का प्रारम्भ किया है। इन्होंने अपनी कथा उन्हीं के मुख से कहलायी है । जायसी ने भी ईश्वर को सब कार्यों का कर्ता बताया है । जायसी ने उसी एक मात्र ईश्वर का स्मरण करके ग्रन्थ का प्रारम्भ किया है। 5 उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि दोनों कवियों के विचारों आदि में काफी समानता है। समय की दृष्टि से से भी इनमें अधिक अन्तर नहीं है । रत्नशेखरकथा पद्मावत से केवल ८५ वर्ष पूर्व लिखी गई थी । अतः ऐसा लगता है कि जायसी ने रत्नशेखर कथा को पढ़कर पद्मावत की रचना की होगी । समय में अधिक अन्तर न होने के कारण उस समय प्रचलित परिपाटी के अनुसार अपने काव्यों में गुरु स्तुति इत्यादि को समान रूप से ग्रहण किया है। ३. कथानक रूढ़ियाँ प्रायः हर कथानक में कुछ प्रयोग ऐसे मिलते हैं जिनका सम्बन्ध कथानक रूढ़ियों से होता है । जैसे -- तोते, किन्नर इत्यादि द्वारा नायिका का सौन्दर्य-वर्णन, चन्द्रमा चकोर का प्रेम सम्बन्ध इत्यादि । इनके माध्यम से कवि अपने कथानक को रोचक बनाते हैं । कथा को मनोरंजक बनाने के लिए जिन अभिप्रायों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ही कथानक रूढ़ियों कहते हैं भारतीय साहित्य में कथानक रूढ़ियाँ अत्यन्त प्रचलित हैं। अतः जिनगण एवं जायसी ने भी कई रूढ़ियों का प्रयोग करके अपने काव्य को सरस बनाया है । इन कथाओं की कुछ प्रमुख कथानक - रूढ़ियाँ निम्नलिखित हैं I (१) सिंहलद्वीप की सुन्दरी — ग्रीक कथा-साहित्य में जिस प्रकार सुन्दरी हेलन सम्बन्धी रूढ़ि है उसी प्रकार १. रयणसेहरीकहा, गाथा १५० २. डॉ० द्वारिकाप्रसाद सक्सेना, पद्मावत में काव्य, संस्कृति और दर्शन, पृ० १५, ३. रयण सेहरीकहा, पृ० १ ५. रयण सेहरीकहा, गाथा १४६ ६. पद्मावत, २०१ ८. पद्मावत १।१ ४. पद्मावत, १२४१३-२ ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १ - विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा, १९७४ Love O . Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : पचम खण्ड भारतीय कथा-साहित्य में सिंहलद्वीप की सुन्दरी सम्बन्धी कथानक-रूढ़ियाँ प्रचलित हैं। कवियों की मान्यता है कि समुद्र-पार सिंहलद्वीप में अनिन्द्य सुन्दरी रहती है। अत: हर कथानक में नायिका अन्य द्वीप की बताई गई है। इसे दोनों कवियों ने अपनाया है। जिनहर्षगणि के कथा-काव्य की नायिका रत्नदेवी समुद्र-मध्य स्थित सिंहलद्वीप के जयपुर नगर के राजा जयसिंह की कन्या है। जायसी के काव्य की नायिका भी सात नमुद्र पार सिंहलद्वीप के सिंहलगढ़ के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री है। (२) सौन्दर्य-श्रवण से प्रेम-सौन्दर्य-श्रवण से नायक-नायिका का प्रेम विह्वल हो जाना एक बहुप्रचलित कथानक-रूढ़ि है । रत्नशेखर नायिका रत्नवती का सौन्दर्य-वर्णन किन्नर युगल से सुनकर प्रेमासक्त हो जाता है तथा उसके बिना अपने प्राणों को धारण करने में भी अपने आपको असमर्थ पाता है। पद्मावत का नायक रत्नसेन भी तोते द्वारा पद्मावती का सौन्दर्य-वर्णन सुनकर प्रेम में व्याकुल हो जाता है और किसी भी प्रकार से उसे पाना चाहता है। (३) नायिका प्राप्ति में योगी रूप का सहयोगरत्नशेखरकथा में मन्त्री रूप-परिवर्तनी विद्या द्वारा योगिनी का रूप धारण कर सिंहलद्वीप जाता है और रत्नवती के पास पहुँचता है ।५ पद्मावत में रत्नसेन स्वयं रत्नाभूपण त्यागकर, शरीर पर भभूत लगाकर, कंथा आदि धारणकर योगी का वेश बनाता है तथा नायिका को प्राप्त करने सिंहलद्वीप पहुँचता है। (४) मन्दिर में मिलन-रत्नशेखर व रत्नवती का मिलन कामदेव के मन्दिर में होता है। जहाँ रत्नवती पूजा करने आती है । पद्मावत में भी रत्नसेन व पद्मावती का मिलन शिवमण्डप में होता है। जहाँ पद्मावती शिव पूजा के लिए आती है। (५) वियोग में अग्निप्रवेश-रत्नवती के वियोग में रत्नशेखर इतना व्याकुल हो जाता है कि एक क्षण भी जीना उसे भार लगता है । नायिका का सौन्दर्य श्रवण करते ही वह वियोग के कारण मरना चाहता है । मन्त्री उसे रोकता है तथा सात माह की अवधि में लाने की प्रतिज्ञा करके जाता किन्तु अवधि समाप्ति तक भी नहीं आता तो नायिका के वियोग में वह अग्नि में प्रविष्ट होना चाहता है। योगिनी आकर उसे रोकती है।१० शिवमण्डप में पद्मावती के जाने के बाद होश में आने पर रत्नसेन उसे नहीं देखता है तो प्रचण्ड विरहाग्नि में जलने लगता है और चिता तैयार कर उसमें प्रविष्ट होना ही चाहता है कि शिव-पार्वती आकर उसे रोकते हैं ।११ (६) दृढ़ता की देवों द्वारा परीक्षा-देवों द्वारा नायक-नायिका की कठोर परीक्षा लिये जाने की रूढ़ि साहित्य में लब्धप्रतिष्ठित है। रत्नशेखर की धामिक दृढ़ता की परीक्षा देव द्वारा ली जाती है किन्तु हर परीक्षा में नायक उत्तीर्ण होता है ।१२ रत्नसेन की नायिका पद्मावती के प्रति प्रेम की दृढ़ता की परीक्षा पार्वती द्वारा की जाती है। पार्वती अप्सरा के रूप में आती है और उसे आकर्षित करना चाहती है किन्तु रत्नसेन प्रेम में रंच मात्र भी नहीं डिगता जिससे पार्वती प्रसन्न होकर उसे सिद्धि प्रदान करने के लिए शिवजी से कहती है ।१३. १. रयणसेहरीकहा, पृ०६ ३. रयणसेहरीकहा, पृ० २ ५. रयणसेहरीकहा, पृ० १० ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १७ ६. रयणसेहरीकहा, पृ० ३ ११. पद्मावत, २१४१२-५ १३. पद्मावत, २११ २. पदमावत, ६५ ४. पदमावत,९३ ६. पद्मावत, १२६ ८. पद्मावत, २१४।४-६ १०. वही, १५ १२. रयणसेहरीकहा, पृ० ३० ०० Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत ६३७ । onormore....... ........ . ...... ... (७) वधू-शिक्षा–भारतीय साहित्य में ही नहीं समाज में भी विवाह के बाद विदाई के समय वधू को मातापिता या सखी द्वारा शिक्षा देने की प्रथा प्रचीन समय से लेकर वर्तमान तक प्रचलित है। रत्नबती की विदाई के अवसर पर उसके माता-पिता--सास-ससुर, देवर एवं गुरुजनों इत्यादि के प्रति आदर भाव रखने एवं सबकी आज्ञानुवर्ती होने की शिक्षा देते है। पद्मावत में पद्मावती की विदाई के अवसर पर सखियाँ उसे पति के अनुकूल चलने की शिक्षा देती हैं। (८) शकुन-विचार-शकुनों को देखकर काम करने की प्रथा आज भी प्रचलित है। इसे भी कथानक-रूढ़ि के रूप में प्रयुक्त किया गया है। रत्नशेखर कथा में मंत्री शुभ शकुन देखकर रत्नवती की खोज में जाता है। तथा जब रत्नवती सखी से नायक के बारे में सुनती है तो उसका बाँया नेत्र फड़कने लगता है जिसे वह शुभ शकुन मानती है । रत्नसेन के चित्तौड़ से पद्मावती की प्राप्ति के लिए प्रस्थान करने पर शकुन देखने वाले शकुन देखकर इष्ट प्राप्ति होने की भविष्यवाणी करते हैं । (६) तोते का उल्लेख-रत्नशेखरकथा में तोते को एक पात्र के रूप में कथा के मध्य में लिया गया है। एक शुक-शुकी रत्नशेखर एवं रत्नवती के हाथ में आ कर बैठते हैं तथा वार्तालाप करते हैं। पद्मावत में तोते को प्रमख पात्र के रूप में प्रारम्भ से ही ग्रहण किया गया है। नायक-नायिका का मिलन भी तोता ही कराता है। - रयणसेहरीकहा पृ० १८. १. निर्व्याजा दयिते ननदृषु नता श्वश्रुषु भक्ताः भवेः । स्निग्धाबन्धुषु वत्सला परिजने स्मेरा स्वपत्निष्वपि ॥ पत्थमित्रजने सनर्मवचना स्विना च तद्द्व षिषु । स्त्रीणां संववननं नतभु ! तदिदं बीजौषधं भर्तुषु ।। २. तुम्ह बारी पिय चहुं चक राजा । गरब किरोधि ओहि सब छाजा । सबफर फूल ओहि के साखा । चहै सो चूरै चहै सो राखा ॥ आएस लिहें रहेहु निनि हाथा । सेवा करेहु लाइ भुइं मांथा । बर-पीपर सिर ऊभ जो कीन्हा । पाकरि तेहि ते खीन फर दीन्हा । बंवरि जो पौंडि सीस भुंइ लावा । बड़ फर सुभर ओहि पं पावा ॥ आव जो फरि के नवै तराहीं । तब अंब्रित भा सब उपराहीं ।। सोइ पियारी पियहिपिरीती । रहै जो सेवा आएसु जीती ॥ ३. तओ पहाणसुउणबलं लहिऊण दक्षिण दिसं पडिचलिओ। ४. तक्काल च वामनयनफुरणेण आणन्दिआ.....। ५. आगै सगुन सगुनिआ ताका। दहिउ मच्छ रूपे कर टाका ॥ भरें कलस तरुनी चलि आई। दहिउ देहु ग्वालिन गोहराई । मालिन आउ मौर लै गाथें। खंजन बैठ नाग के माथें । दहिने मिरिग आइ गौ धाई। प्रतीहार बोला खर बाई ॥ विर्ख संवरिआ दाहिन वोला । बाएं दिसि गादुर नहिं डोला । बाएं अकासी धोविन आई। लोवा दरसन आइ देखाई ॥ बाएं कुरारी दाहिन कूचा । पहुँचै भुगुति जैस मन रूचा ॥ जाकहं होहिं सगुन अस औ गवन जैहि आस । अस्टी महासिद्धि तेहि जस कवि कहा बिआस ।। ६. रयणसेहरीकहा पृ० १६. ७. पद्मावत ५४।५. - पद्मावत, ३८१॥ १-७ -रयणसेहरीकहा, पृ० ४. -~वही, पृ० १६. . -पद्मावत, १३५॥ १-६ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड दोनों काव्यों की कथानक रूढ़ियों का साम्य उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है। दोनों ने कथानक के समान ही कथानक रूढ़ियों को भी समान रूप में प्रयुक्त किया है। ४. काव्यात्मक वर्णन कवि अपने काव्य को रोचक बनाने के लिए विभिन्न काव्यात्मक वर्णनों को अपने काव्य में वर्णित करते हैं। जिनहर्षगण एवं जायसी ने भी अनेक वर्णन अपने काव्यों में किये हैं । यथानायक एवं नायिका दोनों का सौन्दर्य-वर्णन रत्नशेखरकथा एवं पद्मावत में किया (१) सौन्दर्य - वर्णन गया है । - नायिका रत्नवती का सौन्दर्य वर्णन करते हुए कवि ने उसके सम्मुख रम्भा को भी हीन माना है तथा उसने सुर-असुर की सभी सुन्दरियों के सौन्दर्य को जीत लिया है।" जायसी ने भी पद्मावती का सौन्दर्य वर्णन करते हुए उसका चित्र सा उपस्थित कर दिया है। तोता उसका मुख चन्द्रमा के समान तथा अंग मलयगिरि की गन्ध लिए हुए बताता है । जायसी के वर्णन इतने सरस हैं कि पाठक उनमें लीन हो जाता है । नायक रत्नशेखर का सौन्दर्य वर्णन करते हुए सखी उसे प्रत्यक्ष कामदेव के समान बताती है । पद्मावती को उसकी सखियाँ योगियों के बारे में बताती हुई कहती है कि उसमें एक गुरु है जो कि बत्तीस लक्षणों से युक्त राजकुमार लगता है। (२) नगर वर्णन जिनगणि ने रत्नपुर की शोभा का वर्णन करते हुए वहां के मन्दिरों, नागरिकों, गृहस्थों, व्यापारियों आदि का भी सुन्दर चित्र खींचा है। जायसी ने सिंहलगढ़ का वर्णन अत्यन्त रोचक ढंग से किया है। (२) नगर-प्रवेश-वर्णन नगर-प्रवेश का वर्णन दोनों में समान रूप से हुआ है। रत्नपुर के निवासी रत्नशेवर एवं रत्नवती को लेने सम्मुख आते हैं तथा ठाट-बाट से नगर प्रवेश कराते हैं। रत्नसेन व पद्मावती को लेने भी बन्धुबान्धव आते हैं तथा बाजों के साथ नगर प्रवेश कराते हैं । ५. काव्यात्मक गुण-विम्ब जो महत्त्व भारतीय काव्य-क्षेत्र में अलंकार, रस, छन्द आदि को दिया जाता है, वही महत्त्व पाश्चात्य काव्यक्षेत्र में बिम्ब को दिया जाता है । बिम्ब एक ऐसी कवि-कल्पना है जिसके माध्यम से कवि अपने अमूर्त भावों का मूर्तीकरण करता है। इसके माध्यम से कवि अपने भावों को भी मूर्त रूप में अभिव्यक्त करता है । जिनहर्षगण एवं जायसी ने भावाभिव्यक्ति के लिए विम्बों का सहारा लिया है। कुछ प्रमुख विम्ब इस प्रकार है सागर- जिनहर्षगण ने रत्नशेखर की गम्भीरता बाते हुआ है"सायरव्व गम्भीरो..." पृ० २ किया है +0+0+0+0+0+0+ जायसी ने प्रेम की असीमता को दर्शाया है "परा सो पेम समुन्द अपारा। लहरहि लहर होइ विसंभारा। कमल - रत्नशेखरकथा में नायक के सौन्दर्य को अभिव्यक्त करने के लिए "रायमुहकमलाओ परमवणेऊ' १. रयणसेहरीकहा, पृ० २ ३. रयणसेहरीकहा, १० १६ ५. रयणसेहरीकहा, पृ० १-२ ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १८-१६ ---|''–पृ० १७ ११९१३ कवि ने कमल के बिम्ब का प्रयोग २. पद्मावत ६३।२-४ ४. ६. पद्मावत, ४०-४४ = पद्मावत, ४२५८-६, ४२६।१ पद्मावत, १९३११-६ . Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसेहीका एवं जायसी का पद्मावत पद्मावत में पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहा है पद्मावति राजा के बारी पदम गन्ध ससि विधि ओतारी । " २३१३ "रम्भेव साररहिया रम्भा परिमार देवाणं ।" १०२ जायसी ने पद्मावती की भुजाओं का सौन्दर्य इस तरह अंकित किया है"कलियां की जान जोरी।" - ११२२ A कदलीस्तम्भ – रत्नवती के अत्यधिक सौन्दर्य का वर्णन करने के लिए उसके सम्मुख रम्भा को कदली के स्तम्भ के समान सार रहित बताया है सूर्य - रत्नशेखर की तेजस्विता सूर्य बिम्ब से प्रकट की है— "सूरख तेली........१०२ जायसी ने शेरशाह के तेज एवं ओज का प्रदर्शन इस तरह किया है— "सेरसाहि दिल्ली सुलतानू 1 चारि खंड तपइ जस भानू । " - १३०१ If ww..co चन्द्र – यक्षकन्या लक्ष्मी के मुख का सौन्दर्य रत्नशेखरकथा में चन्द्र के बिम्ब से प्रकट किया गया हैपुन्नलायन निही पुन्नचन्द्रवयणा पूओवयार कलिया......." - पृ० ४ पद्मावती के मुख का सौन्दर्य भी चन्द्रबिम्ब से प्रकट किया है “पदमावति में पूनिवं कला । चौदह चाँद उए सिंघला ।" - ३३८।२ -- Commence मेघगर्जन — इस बिम्ब द्वारा जिनहर्षगणि ने वाद्यों की तीव्र आवाज को बताया है"नणातूर निवाएवं नमण्डल मे व गज्जयन्तो वन्दि.१० २० पद्मावत में राजा रत्नसेन के क्रोध का चित्र देखिये "सुनि अस लिखा उठा जरि राजा । जानहु देव घन गाजा । " - ४८६ । १ बाण - जिनहर्षगण ने बाण के बिम्ब द्वारा तीक्ष्ण कटाक्षों का वर्णन किया है"अबलाए पुर्ण बिद्धो कस्छ बाणेहि लिक्खेहि।" - पृ० १० पद्मावती की भौंहों से छूटते बाणों के देखिये "भौहें स्याम धनुकु जनु ताना। जासौं हेर मार बिख वाना । " - १०२।१ हंस - रत्नवती की गति को दर्शाने के लिए राजहंस का विम्ब देखिये— "राजहंसी व सलीलं चकम्मयाणी ।" - पृ० १६ पद्मावती में पद्मावती की चाल का चित्र कुछ इस तरह है "हंस लजाइ समुद कहं खेले । लाज गयंद धूरि सिर मेले । ४८४।५ ६३६ इनके अतिरिक्त भी कल्पवृक्ष, इन्द्र, चकोरी, एरावत हाथी आदि बिम्बों के माध्यम से भावों को अभिव्यक्त किया गया है। जिनहर्षगण एवं जायसी ने इन विम्बों के माध्यम से काव्य में सजीवता एवं मामिकता ला दी है। +0+0+0+0 ६. सामाजिक परिवेश उस समय के सामाजिक जीवन की एक झांकी हमें इन काव्यों में देखने को मिलती है । उस समय सती-प्रथा, प्रेम-विवाह, दहेज-प्रथा इत्यादि प्रचलित थी । इनसे हमें उस समय की सामाजिक स्थिति को समझने में सहायता मिलती है। (१) प्रेम-विवाह की स्वीकृति - उस समय समाज में प्रेम-विवाह प्रचलित थे तथा समाज द्वारा। इन्हें स्वीकृति प्राप्त थी । रत्नशेखरकथा में नायक का आगमन सुनकर राजा जयसिंह आकर उसे सादर ले जाता है और नायिका से विवाह ● . Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ६४० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड कराता है ।' विवाह कर जब वे अपने नगर रत्नपुर पहुँचते हैं तो वहाँ भी भव्य स्वागत किया जाता है । पद्मावत में पहले योगी जानकर राजा गन्धर्वसेन इनकार करता है तथा नायक को सूली देता है किन्तु बाद में भाट एवं तोते के द्वारा परिचय देने पर विवाह कर देता है । इनका भी चितौड़ लौटने पर भव्य स्वागत होता है । ४ (२) सती प्रथा - उस समय समाज में सती प्रथा प्रचलित थी। पति की मृत्यु के बाद पत्नी उसके शव के के साथ सती होती थी। इसे दोनों कवियों ने अपने काव्य में स्थान दिया है। रत्नशेखरकथा में प्रयुक्त एक अन्तर्कथा में एक स्त्री अपने विद्याधर पति के मृत शरीर को देखकर शव के साथ चिता में जलकर सती हो जाती है। * पद्मावत में राजा रत्नसेन की मृत्यु के बाद पद्मावती व नागमती दोनों उसके शव के साथ सती होने के लिए चिता पर लेट जाती हैं। इसका वर्णन जायसी ने बड़े मार्मिक शब्दों में किया है। (३) मूर्ति पूजा -- जिनहर्षगणि एक जैन साधु थे । अतः उनके कथा-काव्य में मूर्तिपूजा का विस्तृत एवं रोचक वर्णन है। पूजा का फल, पूजा के प्रकार इत्यादि का बड़ा भावपूर्ण वर्णन किया है। वन में मन्दिर देखकर मन्त्री स्वर्ण पुष्पों से वस्तु पूजा एवं स्तुति द्वारा भावपूजा करता है। रत्नवती भी पति-प्राप्ति के लिए कामदेव की पूजा करती है।" जायसी ने सूफी होते हुए भी मूर्ति-पूजा का वर्णन किया है। नायिका पद्मावती पति-प्राप्ति के लिए शिव की पूजा करती है।" (४) दहेज प्रथा - भारतीय समाज में दहेज प्रथा प्राचीनकाल से प्रचलित है। इसका उल्लेख दोनों कवियों ने अपने ग्रन्थों में किया है। रस्नशेखरकथा में करमोचन के अवसर पर राजा जयसिंह हाथी, घोड़े आदि देते हैं। १० पद्मावत में भी विदाई के समय राजा गन्धर्वसेन अनेक वस्तुएं दहेज में देते हैं। " ७. भौगोलिक विवरण भौगोलिक विवरणों की दृष्टि से भी इनमें अनेकों साम्य हैं। जिनहर्षगणि एवं जायसी का कार्य-क्षेत्र जम्बूद्वीप से लेकर सात समुद्र पार सिंहलद्वीप तक फैला हुआ है। इनमें रत्नपुर, चित्तौड़, सिंहलद्वीप इत्यादि का उल्लेख समान रूप से हुआ है। (१) रत्नपुर - रत्नशेखरकवा का नायक रत्नपुर नगर का राजा है।" जायसी ने मिलौड़ से सिंहलद्वीप तक के मार्ग का वर्णन करते हुए बीच में रत्नपुर नामक नगर का उल्लेख किया है । १३ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने इसे कल्चुरि शासक रत्नदेव की राजधानी विलासपुर से २० मील उत्तर में माना है । १४ (२) चित्तौड़ रत्नशेखरकथा के कर्ता जिनगणि ने चितौड़ में रहकर इस कथा की रचना की जावसी १. रयणसेहरीकहा, पृ० १८ ३. पद्मावत, २६०-२७३ ५. रयणसेहरी कहा, पृ० २२. ७. रयणसेहरीकहा, पृ० ४. २. ही पृ० १०.१ ४. वही, २७५ ६. पद्मावत ६५०. ८. वही, पृ० १४. १०. रयणसेहरीकहा, पृ० १८. १. पद्मावत, २०. ११. पद्मावत ३०३. १३. पद्मावत, १३८ ८-७. १२. रयणसेहरीकहा, पृ० १ २. १४. पद्मावत - वासुदेवशरण अग्रवाल - १३८ चौपाई की टिप्पणी, पृ० १३५. १५. रमनसेहरीकहा, गावा, १४९. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत 641 ................................-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. के पद्मावत का नायक स्वयं चित्तौड़ का राजा है।' चित्तौड़ से दोनों ग्रन्थों के कर्ता परिचित थे। एक ने चित्तौढ़ में रहकर ग्रन्थ रचना की तो दूसरे का नायक ही चित्तौड़ का है। (3) सिंहल-द्वीप-सिंहल-द्वीप का वर्णन उस समय की लगभग सभी कथाओं में प्राप्त होता है / भारतीय कवियों में ऐसी मान्यता रही है कि समुद्र पार एक द्वीप में अनन्य सौन्दर्य-शालिनी सुन्दरी रहती है / इस मान्यता से जिनहर्षगणि एवं जायसी अछूते नहीं रहे हैं। रत्नशेखरकथा में मन्त्री द्वारा रत्नवती का पता पूछने पर रत्नदेव यक्ष कहता है कि समुद्र के मध्य 700 योजन प्रमाण सिंहल-द्वीप है जो अत्यन्त सुन्दर है / 2 जायसी ने सिंहल-द्वीप का बहुत विस्तृत और रोचक वर्णन किया है। उस द्वीप का सौन्दर्य अनुपम है। (4) अयोध्या-रत्नशेखरकथा में रत्नवती अपना पूर्वभव सुनाती हुई अयोध्या नगरी का उल्लेख करती है। जायसी ने अयोध्या का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पद मिनी को विभीषण पायेगा तो ऐसा लगेगा मानों यहाँ अयोध्या पुन: छा गयी है। इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि रयणसेहरीकहा एवं पद्मावत में समय, कथावस्तु, काव्यात्मक वर्णन, विम्ब-योजना, भौगोलिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से बहुत अधिक समानता है। इनके अतिरिक्त भाषा वज्ञानिक दृष्टि से भी इनमें अत्यधिक साम्य है जिस पर अलग से विचार किया जा सकता है। चूंकि दोनों के समय में अधिक अन्तर नहीं है और रत्नशेखरकथा पद्मावत से पहले लिखी गयी थी अत: यह सम्भावना की जा सकती है कि पद्मावत लिखने से पूर्व जायसी ने यह कथा पढ़ी या सुनी होगी तथा उन्हें इतनी पसन्द आयी होगी कि उन्होंने अपने काव्य के लिए भी इसी कथानक को पसन्द किया। अत: कहा जा सकता है कि पद्मावत का आधार रत्नशेखरकथा है। 1. पद्मावत, 24 / 2. 2. रयणसेहरीकहा, पृ० 6. 1. रयणसेहरीकहा, पृ० 13. 3. पद्मावत, 2412, 955-6. 5. पद्मावत, 361 / 3.