Book Title: Rayansehari Kaha evam Jayasi ka Padmavata
Author(s): Sudha Khavya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 5
________________ ६३६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : पचम खण्ड भारतीय कथा-साहित्य में सिंहलद्वीप की सुन्दरी सम्बन्धी कथानक-रूढ़ियाँ प्रचलित हैं। कवियों की मान्यता है कि समुद्र-पार सिंहलद्वीप में अनिन्द्य सुन्दरी रहती है। अत: हर कथानक में नायिका अन्य द्वीप की बताई गई है। इसे दोनों कवियों ने अपनाया है। जिनहर्षगणि के कथा-काव्य की नायिका रत्नदेवी समुद्र-मध्य स्थित सिंहलद्वीप के जयपुर नगर के राजा जयसिंह की कन्या है। जायसी के काव्य की नायिका भी सात नमुद्र पार सिंहलद्वीप के सिंहलगढ़ के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री है। (२) सौन्दर्य-श्रवण से प्रेम-सौन्दर्य-श्रवण से नायक-नायिका का प्रेम विह्वल हो जाना एक बहुप्रचलित कथानक-रूढ़ि है । रत्नशेखर नायिका रत्नवती का सौन्दर्य-वर्णन किन्नर युगल से सुनकर प्रेमासक्त हो जाता है तथा उसके बिना अपने प्राणों को धारण करने में भी अपने आपको असमर्थ पाता है। पद्मावत का नायक रत्नसेन भी तोते द्वारा पद्मावती का सौन्दर्य-वर्णन सुनकर प्रेम में व्याकुल हो जाता है और किसी भी प्रकार से उसे पाना चाहता है। (३) नायिका प्राप्ति में योगी रूप का सहयोगरत्नशेखरकथा में मन्त्री रूप-परिवर्तनी विद्या द्वारा योगिनी का रूप धारण कर सिंहलद्वीप जाता है और रत्नवती के पास पहुँचता है ।५ पद्मावत में रत्नसेन स्वयं रत्नाभूपण त्यागकर, शरीर पर भभूत लगाकर, कंथा आदि धारणकर योगी का वेश बनाता है तथा नायिका को प्राप्त करने सिंहलद्वीप पहुँचता है। (४) मन्दिर में मिलन-रत्नशेखर व रत्नवती का मिलन कामदेव के मन्दिर में होता है। जहाँ रत्नवती पूजा करने आती है । पद्मावत में भी रत्नसेन व पद्मावती का मिलन शिवमण्डप में होता है। जहाँ पद्मावती शिव पूजा के लिए आती है। (५) वियोग में अग्निप्रवेश-रत्नवती के वियोग में रत्नशेखर इतना व्याकुल हो जाता है कि एक क्षण भी जीना उसे भार लगता है । नायिका का सौन्दर्य श्रवण करते ही वह वियोग के कारण मरना चाहता है । मन्त्री उसे रोकता है तथा सात माह की अवधि में लाने की प्रतिज्ञा करके जाता किन्तु अवधि समाप्ति तक भी नहीं आता तो नायिका के वियोग में वह अग्नि में प्रविष्ट होना चाहता है। योगिनी आकर उसे रोकती है।१० शिवमण्डप में पद्मावती के जाने के बाद होश में आने पर रत्नसेन उसे नहीं देखता है तो प्रचण्ड विरहाग्नि में जलने लगता है और चिता तैयार कर उसमें प्रविष्ट होना ही चाहता है कि शिव-पार्वती आकर उसे रोकते हैं ।११ (६) दृढ़ता की देवों द्वारा परीक्षा-देवों द्वारा नायक-नायिका की कठोर परीक्षा लिये जाने की रूढ़ि साहित्य में लब्धप्रतिष्ठित है। रत्नशेखर की धामिक दृढ़ता की परीक्षा देव द्वारा ली जाती है किन्तु हर परीक्षा में नायक उत्तीर्ण होता है ।१२ रत्नसेन की नायिका पद्मावती के प्रति प्रेम की दृढ़ता की परीक्षा पार्वती द्वारा की जाती है। पार्वती अप्सरा के रूप में आती है और उसे आकर्षित करना चाहती है किन्तु रत्नसेन प्रेम में रंच मात्र भी नहीं डिगता जिससे पार्वती प्रसन्न होकर उसे सिद्धि प्रदान करने के लिए शिवजी से कहती है ।१३. १. रयणसेहरीकहा, पृ०६ ३. रयणसेहरीकहा, पृ० २ ५. रयणसेहरीकहा, पृ० १० ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १७ ६. रयणसेहरीकहा, पृ० ३ ११. पद्मावत, २१४१२-५ १३. पद्मावत, २११ २. पदमावत, ६५ ४. पदमावत,९३ ६. पद्मावत, १२६ ८. पद्मावत, २१४।४-६ १०. वही, १५ १२. रयणसेहरीकहा, पृ० ३० ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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