Book Title: Ratnatraya Part 02 Author(s): Surendra Varni Publisher: Surendra Varni View full book textPage 2
________________ आशीर्वचन वत्थु स्वभावो धम्मो, उत्तम खमादि दहविहो धम्मा । रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो || वस्तु का स्वभाव धर्म है, उत्तम क्षमादि दश धर्म के सोपान हैं तथा सम्यक् रत्नत्रय धर्म है और जीव रक्षा धर्म है। धर्म को जीवन में धारण करना मनुष्य जीवन का सार है । धर्म हीन मानव जीवन व्यर्थ है । धर्म रूपी रथ को चलाने वाले दो गज हैं ( 1 ) श्रावक धर्म (2) साधु धर्म । (1) श्रावक धर्म - श्रावक अष्ट मूल गुण का धारी, षट् आवश्यक का पालन करने वाला होता है, जो अपने जीवन में दोहरे धर्म को निभाता है। गृहस्थ होकर गृहस्थी के कार्य तथा सामाजिक कार्य करता हुआ अपनी आजीविका चलता है तथा परमार्थ धर्म का भी निर्वाह करता है, जिसमें मंदिर निर्माण, शास्त्र प्रकाशन, साधु चर्या का पालन करने हेतु चार प्रकार का दान देता है तथा देव पूजा, गुरु उपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान इन षट् - आवश्यक कर्तव्यों का पालन करता है। (2) साधु का धर्म - साधु ज्ञान, ध्यान, तप में लीन रहकर आत्म कल्याण की साधना में लगे रहते हैं । आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी ने रयणसार में कहा भी है — दाणं पूया मुक्खं सावय धम्मो ण तेण विणा । झाणज्झयणं मुक्खं जदि धम्मो ण तहा सो बि ।। श्रावक और साधु अपने धर्म का यथायोग्य पालन करते हैं। आत्मा का iPage Navigation
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