Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ - सुबोधिनी टीका. मालाचरणम् - -- 'जिन पुण्य प्राप. नहीं कीना, आतम अनुभव चित्त दीना। . तीनही विधि श्रावत- रोके संबर लहि मुख अवलोके ॥ - इस कथन के अनुसार पुण्य और पाप की रोक से ही संवर पूर्वक आत्मा की शुद्धि होती है। प्रभु महावीरने तीर्थकर परम्परा के अनुसार इन दोनों का विनाश कर आत्मशुद्धिरूप मुक्ति की प्राप्ति की यही बात इस पद से टीकाकारने प्रकट की है। 'गुणनिकरनिधानम् ' पद से टीकाकारने . यह कहा है कि आत्मा से जब अष्ट कर्मों का सर्वथा प्रक्षय हो जाता हैतब वह अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त सुख, अनन्तवीर्य आदि आठ गुणसमूह से युक्त हो जाता है क्यों कि इन आत्मा के सच्चे शुद्ध गुणों के आविर्भाव होने में ये कर्म बाधक होते हैं अतःमुक्ति अवस्था में प्रात्मा केवल षट् उर्मियों से ही युक्त रहता है यह कथन इस पद से अपहृत किया गया है। 'कल्पवृक्षोपमानम्' पद से टीकाकारने यह हृध प्रकट किया है कि आत्मा जबतक स्वयं शुद्ध बनती है-तबतक वह दूसरों को भी शुद्धि के मार्ग का उपदेश नहीं दे सकती है प्रभु महावीरने अपनी शुद्धिकरके केवल. ज्ञान की प्राप्ति की और उसके बाद आत्मशुद्धि की देशना जीवों को दी अतःकल्पवृक्ष जिस प्रकार से चिन्तित पदार्थ का प्रदाता होता है, उसी प्रकार से भव्य जीवों द्वारा अभिलषित मुक्ति के प्रदाता प्रभु बोर है जिन पुण्य पाप नहीं कीना, आतम अनुभव चित्तदीना। तिन ही विधि आचत रोके संवर लहि सुख अवलोके ॥ આ કથન મુજબ પુણ્ય અને પાપને રોકવાથી જ સંવરપૂર્વક આત્માની શુદ્ધિ. હોય છે. પ્રભુ મહાવીરે તીર્થંકર પરંપરા મુજબ આ બંનેને નષ્ટ કરીને આત્મશુદ્ધિ ३५ भुजितने भी छ मे पात टरे ५४यी २५८ ४२ छ. 'गुणनिकरनिधानम् ' मा पहनु स्पष्टी४२६१ टीआरे २मा प्रमाणे ज्यु छ ? मामाथी त्यारे આઠકને સંપૂર્ણપણે નાશ થઈ જાય છે ત્યારે તે અનંતજ્ઞાન, અનંતદર્શન, અનંતસુખ અનંતવીર્ય વગેરે આઠ ગુણોથી યુક્ત થઈ જાય છે. કેમકે આત્માના આ બધા સા શુદ્ધગુણના ઉત્પન્ન થવામાં આ બધાં કર્મો બાધક હોય છે માટે મુકિત અવસ્થામાં આત્મા ફક્ત છ ઉમિઓથી જ યુક્ત રહે છે. આ વાત આ પદથી સ્પષ્ટ કરવામાં भावी रे. 'कल्पक्षोपमानम्' ५६43 112 भावात २५८ ४२॥छ मात्मा यांસુધી પિતે શુધ્ધ થતું નથી ત્યાં સુધી તે બીજાઓને પણ શુધ્ધિનાં માર્ગને ઉપદેશ આપી શકતા નથી. પ્રભુમહાવીરે પિતાની શુદ્ધિ કરીને કેવળજ્ઞાન મેળવ્યું અને ત્યાર પછી એને આત્મશુદ્ધિની દેશના આપી છે. એટલા માટે કવૃક્ષ જેમ ચિંતિતઈછિત-પદાર્થને આપનાર છે, તેમજ ભવ્ય જીવો વડે ઇછિત મુકિતને આપનારા

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