Book Title: Rahasya Rahasyapurna Chitthi ka
Author(s): 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 2
________________ रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का आज यह चिट्ठी आचार्य कुन्दकुन्द के समयसारादि ग्रन्थराजों के साथ शास्त्र की गद्दियों पर विराजमान रहती है और उन्हीं के समान बड़े सम्मान के साथ शास्त्रसभाओं में पढ़ी जाती है। इस पत्र की प्रतिष्ठा से प्रभावित होकर आजकल कुछ लोग प्रकाशन के लोभ में इसप्रकार के पत्र लिखने लगे हैं; पर अभी तक तो किसी को ऐसी सफलता प्राप्त नहीं हुई; क्योंकि न तो उनमें कोई महत्त्वपूर्ण विषयवस्तु होती है और न वह गंभीरता ही होती है, जो उक्त कृति में पाई जाती है; बस भावुकता भरी बातें होती हैं, जिन्हें वे अध्यात्म और वैराग्य समझते हैं। पण्डित टोडरमलजी ने यह पत्र लिखते समय यह सोचा भी नहीं होगा कि यह पत्र इतना उपयोगी सिद्ध होगा, इतना लोकप्रिय होगा कि शास्त्रसभाओं में पढ़ा जावेगा। वस्तुत: बात यह है कि यह पत्र इसमें प्रतिपादित विषयवस्तु के कारण इतना लोकप्रिय हो गया है। ऐसे पण्डित तो आपने इस जगत में बहत देखे होंगे, जिन्होंने शास्त्र पढ़े हैं; पर ऐसे पण्डित दुर्लभ हैं कि जिन्होंने शास्त्रों के साथ आत्मा भी पढ़ा हो। ऐसे पण्डित भी कदाचित् मिल जायें कि जिन्होंने शास्त्र पढ़े हों और आत्मा भी पढ़ा हो; परन्तु ऐसे पण्डित मिलना अत्यन्त दुर्लभ हैं, जिन्होंने शास्त्र भी पढ़े हों, आत्मा भी पढ़ा हो और सारी दुनिया को भी पढ़ा हो, दुनिया की नब्ज भी वे जानते हों। पण्डितप्रवर टोडरमलजी उन पण्डितों में से थे, जिन्होंने शास्त्र भी पढ़े थे, आत्मा भी पढ़ा था और दुनिया भी पढ़ी थी। उनकी उस विद्वत्ता की निशानी यह चिट्ठी है, जिस पर हम यहाँ सात दिन चर्चा करेंगे। उस चर्चा में यह बात अपने आप सिद्ध हो जायेगी कि उन्होंने दुनिया भी पढ़ी थी, आत्मा भी पढ़ा था और शास्त्र भी पढ़े थे। यह उस जमाने की चिट्ठी है, जिस जमाने में आवागमन के कोई साधन नहीं थे। लोग पैदल जाते थे या बैलगाड़ियों से जाते थे अथवा घोड़े से जाते थे। आने-जाने के साधन बहुत सीमित थे। पण्डित टोडरमलजी जयपुर में रहते थे और मुलतान आजकल पाकिस्तान में है। आज वह परदेश हो गया है। उस जमाने में जयपुर से पहला प्रवचन मुलतान और मुलतान से जयपुर आना-जाना कितना कठिन काम था ह्र इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। उस जमाने में जबकि आवागमन के साधन अत्यन्त सीमित थे, पण्डित टोडरमलजी की प्रतिष्ठा इतनी दूर-दूर तक सारे देश में फैल गई थी कि लोग अपनी शंकाओं का समाधान करने के लिए उनके पास आते थे और पत्रों द्वारा उनसे समाधान प्राप्त करते थे। साधर्मी भाई ब्र. रायमलजी अपनी जीवन पत्रिका (आत्मकथा) नामक कृति में लिखते हैंह्न "पीछे केताइक दिन रहि टोडरमल्ल जैपुर के साहूकार का पुत्र, ताकै विशेष ज्ञान जानि वासूं मिलने के अर्थि जैपूर नगरि आए। सो इहां वाकू नहीं पाया....। पी, सेखावाटी विषै सिंघाणां नग्र तहां टोडरमल्लजी एक दिली (दिल्ली) का बड़ा साहकार साधर्मी ताकै समीप कर्म कार्य कै अर्थि वहां रहे, तहां हम गए अर टोडरमल्लजी सूं मिले, नाना प्रकार के प्रश्न कीए, ताका उत्तर एक गोमट्टसार नामा ग्रंथ की साखि सूं देते भए। ____ता ग्रंथ की महिमा हम पूर्वै सुणी थी, तासूं विशेष देखी। अर टोडरमल्लजी का ज्ञान की महिमा अद्भुत देखी।" ___ रहस्यपूर्णचिट्ठी से दस वर्ष बाद लिखी गई इन्द्रध्वज विधान पत्रिका नामक आमंत्रण पत्रिका में उन कुछ महत्त्वपूर्ण नगरों के नाम भी हैं, जिन नगरों में वह भेजी गई थी। ध्यान रहे यह चिट्ठी उदयपुर, दिल्ली, आगरा, भिण्ड, औरंगाबाद, इन्दौर, बीकानेर, जैसलमेर, मुलतान, विदिशा, भोपाल, गंजबासौदा जैसे दूरवर्ती नगरों में भेजी गई थी। __ कैसे भेजी गई होगी ह इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। उसके लिए आदमी को भेजना पड़ता था। वह आदमी पैदल जाता था। उक्त आमंत्रण पत्रिका में लिखा गया था कि ह्र "सारां ही विषै भाईजी टोडरमलजी कै ज्ञान का क्षयोपशम १. पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, पृष्ठ ३३४-३३५

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