Book Title: Rahasya Rahasyapurna Chitthi ka
Author(s): 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 1
________________ रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का पहला प्रवचन संतप्त मानस शांत हों, जिनके गुणों के गान में । वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में ।। यह रहस्यपूर्णचिट्ठी पण्डित टोडरमलजी की प्रथम रचना है। इस छोटी-सी रचना में जिनागम के अनेक रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। यही कारण है कि इसका नाम रहस्यपूर्णचिट्ठी रखा गया है। यह चिट्ठी विक्रम संवत् १८११ में फाल्गुन कृष्ण पंचमी को मुलतान नगरवासी अध्यात्मप्रेमी मुमुक्षु भाइयों के पत्र के उत्तर में लिखी गई थी। इसमें उन शंकाओं का समाधान है; जो शंकायें मुलतान नगरनिवासी भाई श्री खानचंदजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धारथदासजी आदि मुमुक्षु भाइयों ने भेजी थीं। चिट्ठी की शैली, प्रौढ़ता एवं इसमें प्रतिपादित गंभीर तत्त्वचिंतन देखकर प्रतीत होता है कि पण्डित टोडरमलजी अल्पवय में ही बहुश्रुत विद्वान एवं तात्त्विक विवेचक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। दूर-दूर के लोग उनसे शंका-समाधान किया करते थे । अरे भाई ! हम शास्त्र लिखते हैं और उन्हें चिट्टियों जैसा भी महत्त्व नहीं मिलता और पण्डित टोडरमलजी ने एक चिट्ठी लिखी और वह शास्त्र बन गई। पिछले ढाई सौ वर्षों से शास्त्रसभाओं में शास्त्रों जैसी पढ़ी जा रही है, पूजी जा रही है। चिट्ठी माने पत्र । पुराने जमाने में पत्रों को चिट्ठी ही कहा जाता था । पत्र एक व्यक्ति लिखता है और वह जिसके नाम लिखता है, उसे वह पढ़ता है; पर पण्डित टोडरमलजी द्वारा लिखा गया यह पत्र ढ़ाई सौ वर्ष से अब तक हजारों लोगों ने पढ़ा है और आगे भी इसीप्रकार पढ़ा जाता रहेगा । १. यह मुलताननगर तत्कालीन पंजाब प्रान्त का एक नगर है; जो आज लाहौर के निकट पाकिस्तान में है।

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