Book Title: Radhanpur Pratima Lekh Sanodha
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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[ २४ ]
॥ श्री शान्तिनाथ - स्तवनम् ॥
कजको मलहस्तमपास्तपुरं सुरराजसभाजनतांहियुगम् । युगदीर्घभुजं भज्ज शान्तिविभुं विभुताजितपञ्चमुखं सुमुखम् ॥ १ ॥ मुखदीधितिनिर्जितशीनरुचि रुचिरागमसंगमभङ्गभगम् । भगवन्तमभीष्टसुपर्वतरुं तरुणारुणमण्डलमञ्जुमुखम् || २ || नखरायुधभूतभयापहरं हरहार मनोहर कीर्तिभरम् । भरतक्षितिपालनतं पत तं तत सद्गुणपक्षिगणात्रनिजम् ॥ ३ ॥ निजरूपपरास्त सुमप्रदरं दरदुःखतमस्ततितिग्मकरम् । करणोरुकठोर भुजङ्गदमं दमनोममगन्धमुखश्वसितम् ॥ ४ ॥ सितशान्तरसामृतनीरनिधि निधिनाथनतक्रममर्थ्यरमम् ! रम रम्यपदाब्जमनन्तबलं बलतितद्गणगेयगुणौघधरम् ॥ ५ ॥ धरणेन्द्र विनिम्मित नव्यनवं नवनीतमृदुज्ज्वलवानिवहम् । वहनं भगवारिनिधावनमं मम शान्तिजिनं जनदत्तमदम् ॥ ६१. मदमत्तमतङ्गजसिंहसमं समतामतमानवशान्तिकृतम् । कृतकर्म्मकदम्बकत्रन्द्यपदं पदमद्भुतमिद्धधियाममलम् ॥ ७ ॥
मलर जितमस्ततमोवृजिनं जिनपुङ्गवमाश्रितवल्गुमृगम् । मृगनाभिसनाभिसुगन्धतनुं तनुजन्मजितं सुजना श्रयत ॥ ८ ॥ इति शान्तिजिनेश तव स्तवनं रचितं खचितं यमकैर्मयका । वितनोतु सतां पठतां प्रमदं कमलोदयकारि गुणाभिमतम् ॥ ९ ॥
"Aho Shrut Gyanam"
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