Book Title: Pushpvati Vichar Tatha Sutak Vicahr
Author(s): Khimji Bhimsinh Manek
Publisher: Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ बे, पण ए रक्तादिक जे ले ते शरीरथी बहार नीकठ्या विना एने अशुचि कहेवायज नहीं एवो नियम बे, कारण के श्रीपन्नवणाजी उपांगमां शरीर थकी बाहिर अशुचि नीकल्या पली तेमां चौद प्रकारना श्रशुचिस्थानीया जीवो उत्पन्न थाय , परंतु ते जीवो शरीरमां अशुचि रह्या थकी उत्पन्न थताज नथी. ए उपरथी स्पष्ट देखाय डे के शरीरनी अंदरनी अशुचि कहेवायज नहीं. झतुवंती स्त्रीना रुधिरनी जे अशुचि , ते श्रत्यंत चष्टताना विकारने धारण करनारीने, कारण के शरीर संबंधी लघुनीति, वमीनीति, थुक, श्लेष्म, रुधिर विगेरे जे अशुचि , तेमां पण परस्पर घणो तफावत . तेम तुवाली स्त्रीनी अशुचि दे ते बीजी श्रशुचि करतां अत्यंत विशेष अशुचिमय बे. जेम सादिक फेरी जनावरोना मुखमा फेर तो थाय बे, परंतु कोश्कना करमवाथी तरत माएस मरणदशाने प्राप्त थाय , अने कोश्कना करमवाथी तेने कचित पीमा भायले, पण तेथी कशी हरकत थती नथी, एवी तारतम्यता जे. वली श्री गणांग तथा जगवती प्रमुख सूत्रोमां एवं पण

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