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बे, तेथी घोल निवासी तप गहना श्रावक तथा श्राविकार्डने संबोधी ने कहे बे के हे बाइ तथा माइ ! श्र सजाय सारी रीते सांजलजो.
संवत अढार पांसग्मां रे, दीवाली लटकाली ॥ कदे खीमचंद शिवराजनो रे, करजो धर्म संजाली 90 सजाय संवत् १०६५ मां रची बे, अने प्रसंग पण दीवाली नो हतो. लखनार पोतानुं नाम पतां कहे बे के ढुं शिवराजनो पुत्र खीमचंद कहुं हुं के सौ कोइ पोतपोतानो धर्म बराबर संजालीने पालजो.
॥ अथ बोतिनास प्रारंभः ॥ राग रामग्री ॥
॥ वीर जिनेश्वर पाय प्रणमीने, प्रणमीये शारद माय रे ॥ बोति निवारण जास जणेशुं, जेम पापमल जाय रे ॥ बोति निबांधी वंश न वाधे, धर्म कर्म नवि कोय रे ॥ एम जाणीने बोति निवारो, जेम वांबित फल होय रे ॥ बो० ॥ १ ॥ जे हिंसादिक महामल बोति, ते लोपे जीव ज्योति रे ॥ ते तो टले तपानल तापे, जो दयारस व्यापे रे ॥ बो० ॥ २ ॥ बोति मूर्ति स्त्रीधर्मिणी जाणो, तेदनो जय घणो यो रे ॥ जेहनो दोष दीसे निज नयणे, वली कह्यो जिनवयणे रे ॥ बो० ॥ ३ ॥ जेह बोति धातु