Book Title: Pushpvati Vichar Tatha Sutak Vicahr
Author(s): Khimji Bhimsinh Manek
Publisher: Bhimsinh Manek
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सोमां आवी बाउने माटे निषिच ने तेमज जलयात्राना वरघोमामां के रथयात्राना वरघोमामां नाग लेवो ए पण ऋतु. वंती बाळने माटे नकामां पापनां नातां बांधवा जेवू . रास वखाण धर्मकथा रे, व्रत पञ्चरकाण मेलो ॥ स्तवन सजाय रास गहुँअली रे,धर्मशास्त्र म खेलो॥४॥
ज्यां रास वंचातो होय, व्याख्यान चालतुं होय तथा धर्मकथा थती होय त्यां पण न जवं. व्रत पच्चरकाण पण ते दिवसे न करवां, अने स्तवन, सकाय, रास तथा गहुँली अने धर्मशास्त्र पण वांचवां नहीं. लखणुं लखे नहीं हायशुं रे, न करे धर्मचर्चा ॥ धूप दीवो गोत्रकारणां रे, नहीं पूजा ने अर्चा ॥५॥
झतुवंती बाइट हाथथी का लेखनकार्य करी शके नहीं, तेमज धर्मचर्चा करवानी पण मना करवामां आवी . धूप, दीवो तथा गोत्रने कारवां विगेरे धर्मकर्मो पण परिहरवां जोश्ए. पूजा अने अर्चामां पण नाग न लेवो. संघ जिमण प्रजावना रे, हाथे देजो म लेजो ॥ बलिदान पूजा प्रतिष्ठानुं रे, मत रांधीने देजो ॥६॥
ज्यां संघ जमतो होय, अनावना थती होय, त्यां जवू नहीं, अने हाथथी कां आपq के लेवू नहीं. पूजा प्रतिष्ठा माटे रसोई रंधाती होय अथवा निर्दोष बलिदाननी रसोइ माटे तैयारी थती होय त्यां न जवु अने पोताना हाथथी कां रांधी न आपq.

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