Book Title: Purva Madhyakalin Bharatiya Nyaya evam Dand Vyavastha Author(s): Zinuk Yadav Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 5
________________ ७८ झिनकू यादव समराइच्चकहा में कालदण्डपाशिक' का भी उल्लेख आया है। सम्भवतः यह दण्डपाशिक से उच्च अधिकारी होता था, जो गंभीर मुकदमों की निगरानी कर अभियुक्त को मृत्यु-दण्ड देता था। अर्थशास्त्र तथा कामसूत्र में नगर के प्रमुख अधिकारी को नागरक कहा गया है। कुछ समालोचकों ने नागरक की व्याख्या दण्डपाशिक के समान की है। समराइच्चकहा में उल्लिखित दण्डपाशिक और कालदण्डपाशिक तथा अन्य उपर्युक्त साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि दण्डपाशिक पुलिस विभाग का प्रमुख अधिकारी था, जो चोर-डाकुओं का पता लगाकर उनको दण्डित भी करता था । वह न्यायिक जाँच के पश्चात् दण्ड देने का भी कार्य करता था। पुलिस विभाग का दूसरा कर्मचारी प्राहरिक' कहलाता था, जो नगरों तथा गाँवों को चोरडाकुओं से सुरक्षित रखने में सहायता करता था। ये प्रहरी ( पहरा देने वाले ) पुलिस कर्मचारी होते थे। कुवलयमाला में जामइल्ल ( यामडल ) शब्द का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार : ग्रंथ में पुरमहल्ल' और नगरमहल्ल' शब्द का भी प्रयोग हआ है। यहां जामइल्ल शब्द का अर्थ प्राहरिक या पहरेदार बताया गया है।' कादम्बरी में भी प्राहरिक' यामिक और यामिक लोक २ ( पहरे के सिपाही ) का उल्लेख है। यहाँ ये अधिकारी याम अर्थात् रात्रि के समय नगर आदि में सुरक्षा की दृष्टि से पहरा देने वाले यामिक और यामिकलोक कहे गये हैं। __समराइच्चकहा में अन्य पुलिस कर्मचारी यथा नगररक्षक तथा आरक्षक ४ आदि का भी उल्लेख है । प्रो० दशरथ शर्मा के अनुसार राज्य की ओर से गाँवों को सुरक्षा एवं शान्ति व्यवस्था के लिए रक्षकार नियुक्त किये जाते थे ।१५ किन्तु समराइच्चकहा में केवल नगररक्षक का ही उल्लेख है, सम्भवतः नगर की रक्षा के लिए पुलिस अथवा सैनिकों का एक जत्था नियुक्त रहता था। आरक्षक का तात्पर्य सुरक्षा सैनिक से है, जो नगरों और गाँवों में शान्ति एवं सुरक्षा बनाए रखने में सहायता करते थे। आरक्षकों को आधुनिक पी० ए० सी० की श्रेणी में रखा जा सकता है, जो केवल आन्तरिक सुरक्षा के ही काम आते थे। १. समराइचकहा, 3, 212; 4, 321 । २. अर्थशास्त्र, 2, 36 11। ३. कामसूत्र, पंक्ति 5-9 । ४. डी० सी० सरकार-इंडियन इपिग्रफी ग्लासरी, पृ० 269 । ५. समराइच्चकहा, 8, 825 । ६. कुवलयमालाकहा, 84124; 135118। ७. वही, 18314। ८. वही, 127131; 24713-4 । ९. देखिए-पाइअसद्दमहण्णवो, पृ० 354 । १०. अग्रवाल-कादम्बरी एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० 267, 270 । ११. वही, पृ० 94, 111, 217-232 । १२. वही, 268, 270 । १३. समराइच्चकहा, 4, 270 ( तओ आउलीहूय नायरया नयरारविषया); 5, 387 । १४. वही, 2, 155-56; 4, 326; 5, 457; 6-509, 519, 522, 597 । १५, दशरथ शर्मा-अर्ली चौहान डायनेस्टीज, पृ० 207 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8