Book Title: Purva Madhyakalin Bharatiya Nyaya evam Dand Vyavastha Author(s): Zinuk Yadav Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 6
________________ पूर्व मध्यकालीन भारतीय न्याय एवं दण्ड व्यवस्था ग्राम तथा नगर शासन 'पंचकुल' समराइच्चकहा में 'पंचकुल" का उल्लेख हुआ है । यह पाँच न्यायिक अधिकारियों की एक समिति होती थी । समराइच्चकहा में उल्लिखित पंचकुल आधुनिक ग्राम पंचायत की भाँति पाँच अधिकारियों की एक न्यायिक समिति होती थी । इनका निर्वाचन धन और कुल के आधार पर होता था । अतः स्पष्ट होता है कि पंचकुल के ये सदस्य धनी, सम्पन्न एवं कुलीन होते थे । कौटिल्य के अनुसार राजा को चाहिए कि प्रत्येक अधिकरण ( विभाग ) में बहुत से मुख्यों ( प्रमुख अधिकारी) की नियुक्ति करे, जो न्यायिक जाँच करें तथा उन्हें स्थायी नहीं रहने दिया जाय । २ स्पष्टतः मौर्य काल में भी इसका संकेत प्राप्त होता है । मेगस्थनीज ने नगर तथा सैनिक- प्रबन्ध के लिए पाँच सदस्यों की समिति का उल्लेख किया है । " गुप्तकाल में भी पाँच सदस्यों की ग्राम समिति को पंच मंडली कहा जाता था । इससे पता चलता है कि पाँच व्यक्तियों का यह बोर्ड बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है । है गुजरात में विशाल देव पोरबन्दर अभिलेख से पता चलता है कि पंचकुल को सौराष्ट्र का प्रशासन नियुक्त किया गया था । आठवीं शताब्दी के अन्त में कुंड (प्राचीन उद्मण्डपुर ) के सारदा अभिलेख में पंचकुल का उल्लेख । गुजरात में प्रतिहार नरेश के सियादोनो अभिलेख में पंचकुल का पाँच बार उल्लेख आया है। विक्रम संवत् १३०६ के चाहमान अभिलेख' तथा विक्रम संवत् १३३६ के भीमनाल अभिलेख में पंचकुल का उल्लेख हुआ है और दोनों अभिलेखों से पता चलता है कि पंचकुल राजा द्वारा नियुक्त किये जाते थे । १३४५ ई० के चाहमान अभिलेख "" में भी पंचकुल का उल्लेख है । एक अन्य स्थान पर तो ग्राम पंचकुल ११ शब्द का उल्लेख आया है । इसी प्रकार एक अभिलेख में पंचकुल को महामात्य के साथ उद्धृत किया गया है । १२ सौराष्ट्र के शक संवत् ८३९ के एक अभिलेख में पंचकुलिक का उल्लेख है, जो सम्भवतः पंचकुल के पाँच सदस्यों की समिति में से एक था।'' इसी प्रकार संग्रामगुप्त के एक अभिलेख में महापंचकुलिक का उल्लेख है, जो एक उच्च अधिकारी जान पड़ता है। इसी प्रकार गुप्त सम्राटों के दामोदर प्लेट में प्रथम कुलिक का ૪ १. समराइच्चकहा, 4, 270-71 6, 560-611 २. निशीथचूर्णि 2, पृ० 101 ४. मैक्क्रिडिल -- मैगस्थनीज फ्रैगमेंट, 31, पृ० 86-88 1 ५. अल्तेकर -- प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, पृ० 177 | ६. इपिग्राफिया इंडिका, 22, पृ० 97 ७. वही, 1, पृ० 173 । ९. बाम्बे गजेटियर, 1, 480 नं० 12 । ३. अर्थशास्त्र, 219 । Jain Education International ८. वही, 11, पृ० 57 । १०. इपिग्राफिया इंडिका, 11, पृ० 58 । ११. वही 11, पृ० 50 । १२. नाहर -- जैन इंस्क्रिप्सन्स 248 - महामात्य प्रभृति पंचकुला । १३. इंडियन एंटीक्यूरी, 12, पृ० 193-94 । १४. जर्नल आफ दी बिहार एण्ड उड़िसा रिसर्च सोसायटी, 588 । ७९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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