Book Title: Punarjanma
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 5
________________ बालक की स्मृतियां १९११ में : १९०९ से १९१४ तक के समय में मैं बम्बई रहा । जब बालक ३ वर्ष का हुआ। तभी से वह मेरे और मेरे बड़े भाई साहब के साथ 'सामायिक' में बैठता था। उसने 'सामायिक' पाठ सीख लिया था। वह हमारे साथ मन्दिर आता और पूजा करता। पूजा के समय "९ अंगों के दोहे" बोलता था। १९११ में एक दिन परिवार की महिलाओं के साथ बालक बम्बई के वालकेश्वर स्थित जैन मन्दिर में दर्शन हेतु गया। वहां की मुख्य प्रतिमा को देखकर वह आवेश के साथ बोला - "इस प्रतिमा से आदीश्वर भगवान की प्रतिमा ज्यादा बडी है।" महिलाएं इस पर बहुत चकित हुई और निम्नलिखित वार्तालाप चल पडा - सोना - (बालक की बुआ) तुम कौन से आदीश्वर भगवान की बात करते हो? सिद्धा- पालीताणा के आदीश्वर भगवान की। सोना - यह तुझे कैसे मालूम? सिद्ध- मैंने उस प्रतिमा की पूजा की है। सोना- तू झूठ बोलता है। तेरे पैदा होने के बाद हम पालीताणा गये ही नहीं। सिद्ध- मैं झूठ नहीं बोलता, सच कह रहा हूं। सोना - यह कैसे हो सकता है। सिद्ध - मैं कहता हूं, मैंने उस प्रतिमा की पूजा की है। सोना - कब? सिद्ध - पहले वाले जन्म में। सोना - पहले वाले जन्म में ! उस जन्म में तुम क्या थे ? सिद्ध - मैं तोता था। सोना - तुम कहा रहते थे? सिद्ध - "सिद्धवड' में। बचपन की सी बात समझकर सोना ने इस वार्तालाप को और आगे नहीं बढ़ाया, पर उसने मुझे व मेरे भाई साहब को यह सारी घटना सुनाई। हमारे प्रश्न करने पर बालक ने वही दोहराई और उसके बाद उस पवित्र तीर्थ पर ले चलने के लिए वह हमारे पीछे पडा रहा। हमने उसे टालने के लिए कह दिया कि यात्रा में लगने वाले खर्च का प्रबन्ध होने पर चलेंगे। इस बीच वह बालक प्रतिदिन कुछ न कुछ बचाता रहा और इस प्रकार उसने कुछ रुपये इकट्ठे कर लिये। उन्हें सिद्धाचलजी में खर्च करने की दृष्टि से वह सावधानी से रखता रहा। सिद्धाचलजी के मार्ग में, तथा बालक की परीक्षा : १९११ की अंतिम तिमाही में मुझे दम का गम्भीर प्रकोप हुआ। मेरे डॉक्टरों ने हवा-पानी बदलने की सलाह दी । मैं प्रातःकाल ही काठियावाड फास्ट पेसेंजर से सिद्धाचलजी के मार्ग पर वढवाण के लिए रवाना हो गया। अब बालक उस पवित्र तीर्थ की यात्रा करने की सम्भावना से बहुत प्रसन्न था। रास्ते में पालघर आता था। वहां कुछ पहाड़ियां हैं। बालक के पूर्व-कथन की सत्यता जांचने की दृष्टि से पालघर पहुंचकर मैंने बालक से कहा कि हम लोग सिद्धाचलजी आ गये, सामने की पहाड़ियां ही वह पवित्र तीर्थ है। बालक ने एकदम Kkkkkkkkkkkkkkkkk«««««««««««««««kkkkkkkkkkkkkkKO

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