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मूर्तिपूजा जैन आगमों में • श्री ठाणांग सूत्र के ठाणा में नन्दीश्वरद्वीप के ५२ जिन
मन्दिरों का अधिकार है। पंडीतजी संप्रदाय के चंपालालजी
म. भी यह मानते हैं। • श्री समवायांग सूत्र के सत्तरहवें समवाय में जंघाचारण
विद्याचारण मुनिओं के तीर्थ यात्रा वर्णन का उल्लेख हैं। • भगवती सूत्र शतक ३ के चमरेन्द्र उद्देशा के अधिकार में
जिनप्रतिमा का शरणा कहा हैं। • श्री उपासकदशांग सूत्र में आनन्द श्रावक के अधिकार में जिनमूर्ति का उल्लेख हैं। रायपसेणीय सूत्र में सूर्याभदेव ने जिनप्रतिमा की पूजा की थी । उसका वर्णन हैं। द्रौपदी जिन प्रतिमा की पूजा करती थी। उसका ज्ञाताधर्मसूत्र में विशद वर्णन हैं। विजयदेव ने जिन प्रतिमा की पूजा की, इसका जीवाभिगम
सूत्र में विशद वर्णन हैं। • शत्रुजय तीर्थ पर कई आत्माएं मोक्ष में गई। इसका अंतकृत्
सूत्र में वर्णन हैं। • अष्टापद तीर्थ पर ऋषभदेवजी के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने
२४ तीर्थंकरों का मन्दिर बनाया है। वहां जिन प्रतिमाओं के आगे रावण ने वीणा बजाकर भक्ति करके तीर्थकर गोत्र बांधा हैं । ऐसे तो वर्तमान के कई उदाहरण है जो पढकर सुनकर आपका दिल दिमाग दुरुस्त हो जावेगा।
अब मिल गया दिव्य प्रकाश • केसरीयाजी (धुलेवा) की मूर्ति ११ लाख वर्ष पुरानी हैं।
नांदीया, क्षत्रीयकुंड दीयाणाजी व बामणवाड़जी (जिलासिरोही) तीर्थ में महावीरस्वामी की मूर्ति, प्रभु के बडे भाई नन्दीवर्धन ने बनवाई थी, उसे २५५० वर्ष हुए हैं। आबू-देलवाडा में १८ करोड की लागत से विश्वविख्यात जैन मन्दिर बनवाने वाले विमल मन्त्री ने दो हजार जिनप्रतिमाएं बनवाई थीं । इसे १०५० वर्ष हुए हैं। +गिरनार के नेमिनाथ प्रभु व जिला-मेहसाणा में हारीज के पास शंखेश्वर तीर्थ में पार्श्वप्रभु की प्रतिमा करोडों (असंख्य) वर्ष पुरानी हैं। • राजा कुमारपाल ने तारंगा तीर्थ (जिला-मेसाणा) में
अजितनाथ भगवान का विशाल मन्दिर व अन्य पांच हजार मन्दिर तथा सात हजार जिन प्रतिमाएं बनवाई थीं। इसे ९०० वर्ष हुए हैं। . देलवाडा (जिला-उदयपुर) के जैन मन्दिर आठ सो वर्ष
पहिले बने थे। पालीताणा तीर्थ के सैंकडों जैन मन्दिर व गिरनार, सम्मेतशिखर, पावापुरी आदि तीर्थ जैन धर्म में मूर्ति पूजा
की मान्यता व प्राचीनता के बोलते इतिहास हैं। + ओसवालों के आद्य संस्थापक रत्नप्रभसूरीश्वरजी म.सा. २४५० वर्ष पूर्व हुए जिन्होंने ३४५००० को जैन बनाया व आप लोग वहां से बाहर निकले ओसवाल कहलाएं।