Book Title: Punarjanma Author(s): Bhushan Shah Publisher: Mission Jainatva Jagaran View full book textPage 3
________________ माँ के गर्भ से बालक के रूप में १२ फरवरी, १९०९ को जन्म लिया । समय बीतता गया। आज वही बालक अपने जीवन के ८५ वर्ष पूरे कर चुका है। तोते के रूप में प्रतिदिन जिसने मूर्ति की पूजा की थी, वही मनुष्य के रूप में आकर हर घडी दरिद्र नारायणों की पूजा करता रहा है। सेवा की साधना और पूजा का भाव जन्म-जन्मान्तर से कायम रहा। इसी पुरुष का नाम है श्री सिद्धराज ढड्ढ़ा। पुनर्जन्म की स्मृतियां लेखक : सिद्धराज ढड्ढ़ा के पिता स्व. श्री गुलाबचन्दजी ढड्ढ़ा दवाई क्रोध आत्मा का अस्पताल रोगी का नाम - सभी संसारी जीव । बीमारी क्षमा मान नम्रता माया सरलता लोभ हस्ताक्षर-प्रधान चिकित्सक - भगवान महावीर लगभग ३० वर्ष पहले की बात हैं, मेरी माताजी अपने प्रपौत्र के जन्मोत्सव के लिए अनेक योजनाए बना रही थी। उनके मन में यह तीव्र आकांक्षा थी कि मरने के पहले वह अपने प्रपौत्र का मुंह देख ले। उस घटना के ४ वर्ष के पश्चात् उनकी आशा की किरण प्रगट हुई। जन्म के पहले बालक का नामकरण : पर्युषण पर्व के पवित्र सप्ताह में उन्होंने एक दिन सब परिवारजनों को एकत्रित किया और इस प्रकार सम्बोधित किया"तुम सब जानते हो कि मेरे मन में ४ वर्ष पहले सोने की सीढ़ी चढ़ने की जो तीव्र आकांक्षा थी, मैं सदा प्रपौत्र के जन्म के सम्बन्ध में ईश्वर से प्रार्थना करती रही है और मझे विश्वास है कि अब-चार-पांच महिनों में मेरी प्रार्थना सफल हो जायेगी। यदि मेरे प्रपौत्र का जन्म हो जाय तो उसके नाम के सम्बन्ध में आप लोगों का विचार जानकर मुझे प्रसन्नता होगी।" बडे लोग इस समस्या का समाधान निकालते उसके पहले ही समूह में से एक दस वर्षीय बालिका चुपचाप निकलकर वृद्ध महिला के पास पहुंची और उसकी गोद में बैठकर मुस्कराते हुए बोली - "अपने रिवाज के अनुसार, मेरी भाभी के होने वाले संतोष Kkkkkkk(4)Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28