Book Title: Pruthviraj Vijay Ek Aetihasik Mahakavya
Author(s): Prabhakar Shastri
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 7
________________ डॉ० प्रभाकर शास्त्री [ २६३ 'साहित्य-रत्नाकर' के संपादक स्व. श्री सूर्यनारायण जी शास्त्री व्याकरणाचार्य ने 'मानवंश महाकाव्य" लिखना प्रारम्भ किया था। यह भी एक ऐतिहासिक काव्य है। इसके कुछ ही सर्ग प्रकाशित हैं । उपर्युक्त घटनाओं के संबन्ध में उनका साक्ष्य इस प्रकार है-- "प्रर्थकदायं धृतसैन्यसंघो मञ्चादिकान् ग्रामगणान् विजित्य । ग्राहो यथा हन्ति सुपृष्टमीनान तथव मीनान् तरसा जधान ॥२०॥ (मानवंश काव्ये द्वितीय सर्गे-पृ० ५१) "भुवः पतिर्दूलहराय वीरो विजित्य माञ्ची विजय प्रहृष्टः । गिरि प्रदेशे निजवंशदेव्या विनिर्ममे मन्दिरमूच्चशङ्गम् ॥१॥ देव्यासु 'बुढवाय' इति प्रसिद्ध नामष 'जमवाय' इति प्रचक्रे । जम्वायमातुस्तु नितान्तरम्यं तन्मन्दिरं ख्यातमिहाद्य यावत् ।।२।। यद्यप्यमुष्मिन् समये स द्यौसां समध्यतिष्ठन्नपदूलहरायः । तथाप्यहो रामगढं गरिष्ठिं न्यवासयत् पत्तनमेव शूरः ।।४।। कुर्वन् स्थिति रामगढे स वीरः स्वराज्यसीमापरिवर्द्ध नेच्छुः ।। खोहं च गेटोरमहो विजित्य तं झोटवाडं सहसा विजित्ये ॥५॥" (संस्कृत रत्नाकर-वर्षासंचिका ३, अक्टूबर १९४१ पृ० ८८) ___ "इतिहास-राजस्थान" में श्री रामनाथ रत्न ने लिखा है-"सोढदेव जी खोह विजय तक दूलहराय के साथ रहे थे । खोह में जाने पर उनकी मृत्यु हुई थी। खोह एक प्रकार से आमेर का ही अंग है।" __(पृष्ठ ८८) इस ग्रन्थ में भी ऐसा ही वर्णन मिलता है । खोह पर अपना अधिकार कर श्रीदूलहराय ने अपने पिता को दौसा सूचना भेजकर वहीं बुला लिया था और उनकी सेवा में रहने लगा था। वहीं श्रीसोढदेव का परलोकवास हुअा था तातं दूतमुखेन वृत्तमखिलं सम्बोध्य साम्बं मूदा देवी वागमृत स्तुतिप्लुतमतिः मित्रसतमेतो मितः । कोशादात्तधनो निधेरिव भृशं कर्तुं स वै मण्डपं गण्डो भुज्जदलि व्रजर्गज वरैरश्वः स वीरैः ययौ" ॥६६५।। "धृत्त्वा सत्त्व समूजितो हृदि शुभं देवी पदाब्जद्वयं खोदेश प्रमुखाः वरानविकलं प्रोत्खय सर्वान् खलान् । राज्यं प्राज्यतरं विधाय जनक सत्सूनुतानुत्दितं कुर्वन् गर्व विवजितोजितयशा रेजे स राजात्मजः ।।६६८।। श्री दूलहराय के पुत्र का नाम “काकिल" था। काकिल के जन्म का वर्णन इस पद्य से प्रकट किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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