Book Title: Pruthviraj Vijay Ek Aetihasik Mahakavya
Author(s): Prabhakar Shastri
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 12
________________ २६८ ] " सूनुस्तस्य हनोत को गतवति देव्याधाम भुवंशशास पृथ्वीराज विजय - एक ऐतिहासिक महाकाव्य श्रीकाकिले भूपतौ बलवानुग्रप्रतापश्चिरम् । तस्य श्री बलभूषिते 5 मरपुरं याते च तस्मिन् महासूनुर्जानुग बाहुराहव जयी सभ्रातृकः संययौ " ||७४४।। इनके पश्चात् प्रजवन (पजवन या पजोन जी ) उत्तराधिकारी बने । ६. श्री पजवन जी ( चैत्र शु० ७ सं० १९२७ से ज्येष्ठ कृ० ३ संवत् ११५१ ) महाराज पजवन जी राजनीति तथा युद्धादि में निपुण और साहसी होने के कारण हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पंचवीरों में से एक थे- ऐसा प्रसिद्ध है । पृथ्वीराज रासो में महाकवि चदवरदाई इनका ओजस्वी वर्णन किया है। 'पृथ्वीराज विजय' काव्य में इनका वर्णन एक ही पद्य में किया है Jain Education International श्रीमांस्तस्य सुतो बली प्रजवनो नामस्फुरद् विक्रमे भर्तृ विक्रम यत्कलासु चतुरो हर्ष प्रतेने गुरौ । गर्ज रिगज प्रभञ्जन हरिर्मोहाब्धि मज्जत्तरि स्स्वर्यात पितरि प्रभासवितरि त्राता बभूवावनेः ।। ७४५।। इनके एक ही पुत्र था, जिसका नाम मलयसी जी (मलेषी ) था । ७. श्री मलयसीजी (ज्येष्ठ कृ० ३ सं० १९५१ से फाल्गुन शु० ३ सं० १२०३ ) अपने पिता के समान ये भी वीर व पराक्रमी थे। श्री चन्दवरदायी ने इनकी भी प्रसंसा की है । सभी इतिहासों में यही लिखा है कि पजवनजी के एक ही पुत्र था, परन्तु इस काव्य में चार अन्य पुत्रों के विषय में भी संकेत है । "मल्लेषी तनयो बभूव भयदो मल्लो व्रतोद्वेषिणां चत्वारस्तनया बभूवुरपरे तस्य प्रभावोज्ज्वलाः । राजासौ निबवन्ध युद्धविजितं नागौरिकाधीश्वरं तद्राज्यं निजसाच्चकार मिहिरो भूचारिपाथो यथा" ।।७४६।। "कन्नोज युद्ध के एक वर्ष पश्चात् मलयसीजी ने नागोरगढ गुजरात, मेवाड़ तथा मांडू को जीता था । श्री पर्वणीकरजी ने 'जयवंश महाकाव्य' में लिखा है - "उपेत्य नागौर मनल्प विक्रमस्तदीश गौरीपतिना नृपः समम् । अयुद्ध लक्षत्रय सैन्य संयुजा स्वयं पर पञ्चसहस्त्र सैनिकाः ||१०|| स्वविक्रमोपायविधेर्व्यधात्तमां स गुर्जरीये 5 सुलभे ऽपि नीवृति | पदं स्वकीयं निहितं हितं ततं न कस्य विक्रान्तिबलं बलीयसः ||१७|| कदाचिदत्यन्तररणोद्धतोद्भटः क्षमापतिः प्राप्त महेन्द्र विक्रमः । मिवाडदेशाधिपतिं ससेनक रणेषु धिक्कृत्य पदं स्वकंन्यधात् ||१६|| ( जयवंश, चतुर्थ सर्ग - १० से २० तक ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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