Book Title: Pravachansara ka Sar Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 2
________________ क्या है प्रवचनसार ? जिनेन्द्र भगवान के प्रवचन (दिव्यध्वनि) का सार यह कालजयी 'प्रवचनसार' परमागम आचार्य कुन्दकुन्द की सर्वाधिक प्रचलित अद्भुत सशक्त संरचना है। समस्त जगत को ज्ञानतत्त्व और ज्ञेयतत्त्व (स्व-पर) के रूप में प्रस्तुत करनेवाली यह अमरकृति विगत दो हजार वर्षों से निरन्तर पठन-पाठन में रही है और अपनी महत्त्वपूर्ण विषयवस्तु के कारण आज भी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में इसे स्थान प्राप्त है। इस ग्रन्थराज की विषयवस्तु को तीन महाधिकारों में विभाजित किया गया है । 'तत्त्वप्रदीपिका' टीका में आचार्य अमृतचन्द्र उन्हें ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन, ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन एवं चरणानुयोगसूचक चूलिका नाम से अभिहित करते हैं तो 'तात्पर्यवृत्ति' टीका में आचार्य जयसेन सम्यग्ज्ञानाधिकार, सम्यग्दर्शनाधिकार एवं सम्यक्चारित्राधिकार कहते हैं। ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार में अनन्त ज्ञान एवं अतीन्द्रिय आनन्द की प्राप्ति के एकमात्र हेतु शुद्धोपयोग का एवं उससे उत्पन्न अतीन्द्रियज्ञान (सर्वज्ञता) एवं अतीन्द्रिय आनन्द का तथा सांसारिक सुख और उसके कारणरूप शुभ परिणामों का सम्यक् विवेचन प्रस्तुत करते हुए अशुद्धोपयोगरूप शुभाशुभ परिणामों को त्यागकर सम्यग्दर्शन - ज्ञान पूर्वक शुद्धोपयोगरूप वीतरागचारित्र ग्रहण की पावन प्रेरणा दी गई है। वस्तुस्वरूप के प्रतिपादनरूप ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार में तीन अवान्तर अधिकार - द्रव्यसामान्याधिकार, द्रव्यविशेषाधिकार एवं ज्ञान - ज्ञेयविभागाधिकार के माध्यम से जैनतत्त्व की विस्तृत मीमांसा की गई है। इसप्रकार प्रवचनसार की मूल विषयवस्तु ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन एवं ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकारों में ही समाप्त हो जाती है; परन्तु चारित्र के धनी आचार्यदेव सम्यग्दर्शन - ज्ञान की निमित्तभूत वस्तु का स्वरूप प्रतिपादित कर शिष्यों को चारित्र धारण करने की प्रेरणा देने के लिए चरणानुयोगसूचक चूलिका नामक तीसरे अधिकार की रचना करते हैं। इस अधिकार में जहाँ एक ओर शिथिलाचार के विरुद्ध चेतावनी दी गई है, वही अनावश्यक कठोर आचरण के विरुद्ध भी सावधान किया है। ग्रन्थ के अंत में मंगल आशीर्वाद देते हुए आचार्य कहते हैं कि जो व्यक्ति जिनेन्द्र भगवान के प्रवचनों के सार इस प्रवचनसार ग्रन्थ का भलीभाँति अध्ययन करेगा, वह प्रवचनसार के सार शुद्धात्मा को अवश्य प्राप्त करेगा। १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. विषय-सूची पहला प्रवचन दूसरा प्रवचन तीसरा प्रवचन चौथा प्रवचन पाँचवाँ प्रवचन छठवाँ प्रवचन सातवाँ प्रवचन आठवाँ प्रवचन नौवाँ प्रवचन दसवाँ प्रवचन ग्यारहवाँ प्रवचन बारहवाँ प्रवचन तेरहवाँ प्रवचन चौदहवाँ प्रवचन पन्द्रहवाँ प्रवचन सोलहवाँ प्रवचन सत्रहवाँ प्रवचन अठारहवाँ प्रवचन उन्नीसवाँ प्रवचन बीसवाँ प्रवचन इक्कीसवाँ प्रवचन बाईसवाँ प्रवचन तेईसवाँ प्रवचन चौबीसवाँ प्रवचन पच्चीसवाँ प्रवचन ९-२६ २७-४४ ४५-६२ ६३-७९ ८०-९६ ९७-११४ ११५-१२६ १२७-१४५ १४६ - १५८ १५९-१७१ १७२ - १८७ १८८- २०३ २०४-२१८ २१९-२२९ २३०-२४३ २४४-२५७ २५८- २७६ २७७-२९३ २९४-३०९ ३१०-३२५ ३२६-३४३ ३४४-३६१ ३६२-३७६ ३७७-३९३ ३९४-४०८Page Navigation
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