Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 357
________________ ३३८ ] श्रीप्रवचनसारटीका | विशेषार्थ - जो साधु संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय तीन दोपोंसे रहित होकर अनन्तज्ञानादि स्वभावधारी निज परमात्म पदार्थको आदि लेकर सर्व वस्तुओंके विचार में चतुर होकर उस चतुराई से प्रगट जो अतिशय सहित परम विवेकरूपी ज्योति उसके द्वारा भले प्रकार पदार्थोंके खरूपको जाननेवाले हैं तथा पांचों धीन न होकर निज परमात्मातत्वकी भावना रूप परम ममाधिसे उत्पन्न जो परमानंदमई सुखरूपी अमृत उसके स्वादक लोगने के फलसे पांचों इंद्रियोंके विषयों में रच भी आशक्त नहीं हैं और जिन्होंने बाहरी क्षेत्रादि अनेक प्रकार और भीतरी मिथ्यात्ताद चौदह प्रकार परिग्रहको त्याग दिया है, ऐसे महात्मा ही शुजोपयोगी मोक्षकी सिद्धि कर सक्ते हैं ऐसा कहा गया है। अर्थात् ऐसे परमयोगी ही अभेद नयसे मोक्षमार्ग स्वरूप जानने योग्य हैं । भावार्थ- मोक्ष के साक्षात् साधन करनेवाले वे ही महात्मा निम्नथ तपोधन होसक्त हैं जिन्होंने स्याद्वाद नयके द्वारा शुद्ध अशुद्ध सर्व पदार्थों के स्वरूपको अच्छी तरह जानकर उनमें दृढ़ निश्रय नाप्तकर लिया है अर्थात् जो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानसे युक्त हैं और जिन्होंने अन्तरङ्ग बहिरंग चौवीस प्रकारकी परिग्रहको त्यागकर पांवों इंद्रियोंकी अभिलापा छोड दी है अर्थात् उनमें रञ्च मात्र भी इच्छादान नहीं हैं, इसीलिये सम्यम्चारित्रके धारी है । वास्तवमें I रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग हैं जो इसे धारण करते हैं वे ही शिव रमणीके पर होते हैं । श्री सुरीने स्वानी इसी बात को दिखाने है-

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