Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 366
________________ .तुताय खण्ड। :३४७. अग्नि है जो कर्मोके ईधनको जला देती है और आत्माको परम पवित्र कर देती है। विना स्वानुभव नोझ नगर कपाट नहीं खुल सका है। अंतग लबा गई नाव ही गोभना साक्षात मावक है । मैमा बाली अनुतने सनसारकलगने कहा है:--- लिश्यन्ता वाले दुकामाक्षभिः । • क्लिश्चन्तां च परेममा ततपाग रे ग म ॥ साक्षान्मोक्ष नरामयर सचेटामा स्वर । शानं हानगुगं बिना कथमपि प्राप्त क्ष लेनी १०६॥ गाशय-गेई म्वय ही अपन्त कांठन मोक्षक विरोधी कार्योको करता हुभाग गोगे तो भोगो; दूसरे कोई महावा और तपके भारसे आत्मानुभवके बिना पीडित होकर केश भोगे तो भोगो यह मोक्ष तो गक्षात् सर्व दोपरहित एक ऐमा पद है कि जो स्वयं अनुभवमे आने योग्य है और परम ज्ञानमई है उसका लाभ विना स्वात्मानुभवमई आत्मज्ञानके और किसी भी तरह कोई कर नहीं सक्ते हैं । और भी कहते हैं त्यक्त्वाशुद्धिविधायि तत्किल परदव्यं समन्नं स्वयं । खद्रव्ये रतिमेति यः स नियतं सर्वापरांधच्युतः ।। वन्धध्वंसमुपेत्त्य नित्यमुदितः खज्योतिरन्छोच्छल चैतन्यामृतपूरपूर्णमहिमा शुद्धो भवन्मुच्यते ॥ १२ ॥ भावाथ-जो कोई रागद्वेपादि अशुद्धिके निमित्त कारण सर्व परद्रव्यके संसर्गको स्वयं त्यागकर और नियमसे सर्व रागादि अपराधोंसे रहित होता हुआ अपने आत्माके स्वभावमें लवलीन हो जाता है वही महात्मा कर्मवन्धका नाश करके नित्य प्रकाशमान होता हुआ अपनी ज्ञान ज्योतिके निर्मल परिणमनरूप चैतन्यरूपी

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