Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 381
________________ श्रीप्रवचनसारंटीका । ताहीके अति निकट ही, मंदिर एक महान् । उच्च कहत महादेवजी, टिकसीके यह जान भीत तासके मध्य में, आलेमें जिनदेव । ३६२ ] १२ ॥ प्रतिमा खंडित' शुभ सैं, पार्श्वनाथ भी देव ॥ १३ ॥ याते यह अनुमान सच, है उतंग प्रासाद । श्री जिनवरका थान यह है शिवकरि आवाद ॥ १४ जमुना तट मारग निकट, नसियां श्री मुनिराज । भूल गए जैनी सबै, पूजत जिन मति त्याज ॥ १५ ॥ कहत नसैनी दादि है, पुत्र पौत्र करतार | अग्रवाल जैनी सभी, पूजा करत सम्हार || १६ | चरण पादुका लेख सह, गुमटी एक मंझ 1 शोभ रहे मुनिनाथके, सागर विनय विचार ॥ १७ ॥ मूलसंघ झलकत महा, हेमराज जिन भक्त । ब्रह्म हर्ष जसराज भी, प्रणमत गुण अनुरक्त || १८ | एकसहस नव्वे लिखा, संवत विक्रम जान । फागुण शुक्ला अष्टमी, बुधवासर अघहान ॥ १९ ॥ है समाधि जिन साधुकी, संशयको नहिं थान । पूजन भजन सुध्यानको, करहु यहां पर आन ॥ २० ॥ दिक - अम्बर जैनी वसे, सब गृहस्थ सुख लीन । सात शतक समुदाय सब, निज कारज लवलीन ॥ २१ ॥ अग्रवालके संघ में, पुत्तूलाल रसाल । गुलकन्दी भगवानके, दास सुलक्ष्मणलाल विद्या रुचि गोपालजी; मदन आदि रस पीन । गोलालार समाजमें, मल कल्याण अदीन ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥

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