Book Title: Pratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Samstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Samstha

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Page 9
________________ श्रीयशोदेवी प्रत्या ख्यान स्वरूपे. ॥ ७ ॥ तओ परओ ॥ ८० ॥ किञ्चिदूनत्वाविवक्षया चतुर्भिर्गुणनं । मयरे पुण दिणमाणं चउवीसं नाडिगाओ पढमदिणे । छत्तीसं घड़ियाओ रयणिपमाणं मुणेयत्र्वं ॥ ८१ ॥ परओ दिणस्स वुड्डी रयणीहाणी य पुव्वनिद्दिष्ठा । ता नायव्वा | जाव उ उत्तरअयणस्स चरिमदिणं ॥ ८२ ॥ एवं च पडह चडर व घडिया पक्खेण दोन्नि मासेण । दिणरयणिपमाणाओ भणियविहाणेण अयणदुगे ॥ ८३ ॥ पोरिसिविसओ नियमोवि पोरिसी तत्थ सुत्तमेयं तु । आगारछकजुत्तं भणियं जिणगणहरिदेहिं ॥ ८४ ॥ पोरिमिं पच्चक्खाट उग्गए सूरे, चउव्विपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेण | पच्छन्नकाणं दिसामोहेणं साहुत्रयणेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइति ॥ एयस्सवि वक्खाणं जह नवकारे तदेव कायव्वं । नवरं पच्छन्नेणं कालेणं एवमवसेयं ॥ ८५ ॥ मेहमहियारयाईछन्ने सूरे न नज्जई दिवसो । तो पच्छन्ने काले पुन्ने पहरोत्ति कलिऊण ॥ ८६ ॥ भुजंतस्स न भंगो अह भुंजतो स कहवि जाणेज्जा । नो पुन्नो तो सहसा ठाएज्ज न ठाइ तो भंगो ॥ ८७॥ तथा--कोऽवि हु कहिंपि देसे दिसिमोहा पच्छिमंति पुव्वंपि । कालिऊण गओ पहरो इमोऽवरण्होत्ति बुद्धीए ॥ ८८ ॥ भुंजेज्जा न य भंगो मोहावगमाइणा उ विन्नाए । ठायच्वं नो टायर जह निरवेक्खस्स तो भंगो ॥ ८९ ॥ साहुवयणं तु एत्थं उग्घाडा पोरिसित्ति एमाई । सोच्चा भुंजत दोसो नाए पुर्ण इहवि ठाएज्जा ॥ ९० ॥ एत्थ इमो भावत्थो जइणो भासंति सच्चमेव गिरं । तो सूत्र विचारे पौरुषी ॥७॥

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