Book Title: Pratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Samstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Samstha
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वीये
ख्यान
श्रीयशोदे नारिओ आगओ थिरी होज्जा । सज्झायाइविधाओत्ति गंतुमन्नत्थ तो भुंजे ॥११२॥ गिहिणो पुण सागरिओ
एकासण जच्चक्खुनिरिक्खियं न जीरेज्जा । अन्नं वा पाणभयं जत्तो होज्जा धणभयं वा ॥११३॥ आउंटणं च जंघाइयाण
सूत्र प्रत्यासंकोयणं मुणेयव्वं । आकुंचियाण तेसिं पसारणं इह रिजूकरणं ॥ ११४ ॥ असहू नरेण तम्मी कीरंते किंचि
व्याख्या आसणं चलइ । तत्तो तं मोत्तूणं पच्चक्खाइत्ति भावस्थो ॥११५॥ एत्थ गुरू आयरिओ पाहुणगो वावि तस्स स्वरूपे.
| कायव्वं । अन्भुट्ठाणं आसणचयणं जीयंति सयकालं ॥११६ ॥ तम्हा भुजंतेणवि अन्भुट्टाणं इमस्स कायव्वं । ॥१०॥ |गुरुलाघवचिंताए जम्हा धम्मो समक्खाओ ॥ ११७ ।। पारिद्यावणियं पुण उग्गमउप्पायणेसणासुद्धे । विहिगहिए ।
|विहिभुत्ते उठवरियं जमसणाईहिं ।। ११८ ॥ छंडिज्जंते दोसा बहुतरगा तत्थ हुति तो गुरुणा। भणिओ वियरेज्ज
तयं अट्ठमछट्ठाइकारीणं ॥ ११९ ॥ पच्छाणुपुब्वियाए ता देज्जा जाव निम्वियतवस्सी । अह कहवि होज्ज बहुयं | सव्वेसिं चेव तो देयं ॥ १२० ॥ तुल्ले तवोविससे बालाबालाण कस्स दायव्वं ? । भन्नइ बाले दाउं देज्जा इयरेवि जइ बहुगं ।। १२१ ॥ दोण्ह बालाण मज्झे दायव्वं असहुणो न इयरस्स । दोण्हं असणं पुण दायव्वं हिंडग-18 स्सेव ॥ १२२॥ दोण्हवि हिंडताणं दायव्वं पाहुणे न वत्थव्वे । जइ पाणगआहारो पच्चक्खाओ न एएहिं॥१२॥ अह पाणगंपि होज्जा विगिंचियव्वं तओ उ दायव्वं । पाणगआहाराओ विरयाविरयाण दोण्हंपि ॥ १२४ ॥दसमाइविगिट्टतवस्सियाण नो दिज्जई इमं जेण । पायोसिणभत्तुंचिया जेणं व सदेवया ते उ ॥ १२५ ॥ केसिंचि | अट्टमाइ तवो विगिट्ठो तओ नतं देयं । अहमतवस्सियाणवि कारणमेत्थंपितं चेव ॥ १२६ ॥ सोविजई जइसुइयं
१०॥
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