Book Title: Pratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Samstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Samstha

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Page 11
________________ श्रीयशोदेवीये प्रत्याख्यान स्वरूपे ॥ ९॥ कज्जे तमेव आगारो। पच्चक्रवाण डबवाओ भन्नइ इह महयरागारो ॥ १०३ ॥ तेगं भुजंतस्सवि गुरुणो आणाए निरभिलाभस्स । तं चैव फलं जायइ पच्चक्खाणस्स जं भणियं ॥ १०४ ॥ एयस्सिहेव गहणं न पुणो नवकारस हियमाईसु । कालस्सऽप्पबहुत्तं मन्नामो कारणं तत्थ ॥ १०५ ॥ वक्वायं पुरिमड्ढे इहि एकासणं पवक्खामि । तत्थ य सुत्तं इणमो अट्ठविहागारसंजुत्तं ॥ १०६ ।। एक्कासणं पच्चखाइ चउव्विपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणाभोगणं सहसागारेणं सागारिया| गारेणं आउंटणपसारेण गुरुअन्भुट्टाणेण पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारणं वोसिर । एकं असणं अहवावि आसणं जत्थ निच्चलपुयस्स । तं एक्कासणमुत्तं इगवेला भोयणे नियमो ॥ १०७ ॥ तं पच्चखाइ विहेययाए अंगीकरेइ सेसत्थो । एत्थवि तहेव नेओ नवरि विसेसो इहं एसो ॥ १०८ ॥ सागारिओगिहत्थो परलिंगी वा स एव आगारो। पच्चक्खाणववाओ भन्नइ सागारियागारो ॥ १०९ ॥ सागारियरस पुरओ जम्हा भोतुं न कप्पड़ जईणं । पवयणउवघायाओ एत्तीच्चिय आगमें भणियं ॥ ११० ॥ छक्कायदयावंतोवि संजओ दुल्लहं कुणइ बोहिं । आहारे नीहारे दुर्गुछिए पिंडगहणे वा ॥ १११ ॥ तो भुंजंतस्स जया साग एकासण सूत्र व्याख्या ॥९॥

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