Book Title: Pratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Samstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Samstha
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श्रीयशोदेवये प्रत्याख्यान स्वरूपे
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तेच्चिय गज्झवया न जहिच्छावाइणो इयरे ॥ ९१ ॥ भासादोसविहिन्नू साहू साहुस्स कारणवसेणं । साहइ कालपमाणं पोरिसिपुरिमडुमाईयं ॥ ९२॥ तं सोउं भुजंतो पच्चक्खाणस्स होइ नहु भंगो । अहणाभोगा मुणिणा कालपमाणं समुल्लवियं ॥ ९३ ॥ अन्न वा उवलद्धो ठायव्वं तत्थ मुहगयं सव्वं । रक्खाइसु खिवियव्वं हत्थगयं भायणे चेव ॥ ९४ ॥ आयमिउ इहरा वा खमियव्वं जाव पुज्जए नियमो । पुण्णे पच्चक्खाणे पुणोऽवि भुंजेज्ज | सरिणं ॥ ९५ ॥ सव्वसमाही एसा गाढायंकाइ विरहियत्तं जं । तप्पच्चय आगारो तीए च्चिय पच्चक्खाणंति ||१६|| तिब्वसूलाइदुक्खा संजाए अहरोद्दझाणन्नि । तस्सोवसमनिमित्तं ओसहपत्थाइकरणेऽवि ॥ ९७ ॥ नो भंगो | संपज्जइ दुक्खावगमे समाहिलाभे उ । ठायव्वं नो ठायह तो भंगो होइ नियमस्स ॥ ९८ ॥ पोरिसिपच्चक्खाणं भणियं संपइ भणामि पुरिमङ्कं । तत्थ य एयं सुत्तं सत्तविहागारसंजुत्तं ॥ ९९ ॥
सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाह, चउव्विपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नका लेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइति ।
सूरुग्गमाइयाणं पयाण अत्थो इहेब तह चैव । जह पोरिसीऍ भणिओ नवरि विसेसो इमो इत्थ ॥ १०० ॥ पुरिमं पढमं अद्धं दिणस्स पुरिमडमेयविसयं तु । पच्चक्खाणंपि भवे पुरिम तइयगो नियमो ॥ १०१ ॥ मयहरयं गुरुतरयं पच्चक्खाणाणुपालणाओऽवि । बहुनिज्जरानिमित्तं तहेव पुरिसंतरासज्यं ॥ १०२॥ चेइयगिलाणसंघाइयाण
सूत्रविचारे पुरिमार्ज
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