Book Title: Pratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Samstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ ट्त्रिंशिका श्री जिन स्तोत्र // 31 // | कुलथी, ते किम कहूं अकल्याण ? / 4 / इंद्रे भद्रबाहुए कहघु ए, श्रेय कल्याण फल जे। निंद्य अकल्याणकभूत किम ?, अहो जिनचंद्र वीर ते।। श्रीवीरस्तवन-नारे वीर ! नहीं मान रे, नहीं मानुं नहीं मान रे। नहीं मानें तारुं अकल्याण, प्रभु गर्भकल्याण प्रमाण / / नारे वीर ! नहीं मानु रे, किम मार्नु किम मार्नु रे / प्रभु ! अकल्याणकभूत, जे गर्भापहार तात !, नारे वीर ! | आषाढि सुदी छठी दिने रे, आव्या देवानंदा कूख रे / ते दिन गर्भाधाने कल्याण श्रेय, ए पंचाशक साख, नारे वीर ! // 3 // आसोज वदी तेरस दिने रे, गर्भधारण त्रिशला कूख रे ! / इंद्रे श्रेय कल्याण माताए, मान्यु कल्पसूत्र मूल साख, नारे वीर ! // 4 // जन्म दीक्षा केवल मोक्ष | थयु रे, कल्याण श्रेय छ ए जाण रे / अकल्याण गंध सूत्र नहीं रे, जिनचंद्र वीर वखाण, नारे वीर !014 / थुइ-कल्याण ते श्रेय रूपे मानिया ए, माता बे कूखे महावीर तो, सर्व जिन जननी कूखे ए. आवQ कल्याण तिम धार तो // भांखी जिन पडिमा पूजा ए, ऋतुवंती न पूजे देव तो। जिन पूजती ऋतुवंती थाय ए, पूजे न ते प्रभाविक देव लो // 1 // दिने रेरण चिन्नाला कुख रे ! / अंग्रे और अकल्याण गंध श्रीजयसोममहोपाध्यायविरचितस्वोपज्ञवृत्तियुतं ... श्रीपौषधषत्रिंशिकाप्रकरणं समाप्तम् NRN BVRI31 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210