Book Title: Pratishtha Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar

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Page 12
________________ भूमिका Jain Education International Cx— उपाध्याय श्री विनयसागर जी ने अपने प्रवासकाल में नागौर मेड़ता, अजमेर, किसनगढ़, जयपुर, कोटा और रतलाम आदि स्थानों, के जैन मंदिरों में सुरक्षित मूर्तियों के लेखों का संग्रह किया था । वही इस संग्रह के रूप में प्रस्तुत है । इस संग्रह में बारह सौ लेख हैं । श्री विनय सागर जी साहित्यक अभिरुचि के व्यक्ति हैं । धर्म प्रचार के साथ साथ अपनी यात्रा को उन्होंने इस प्रकार के सुन्दर और उपयोगी साहित्यिक यज्ञ में परिणत कर दिया, इसके लिये मैं ऐतिहासिक जगत् की ओर से उनका विशेष अभिनन्दन करता हूँ ! सचमुच जहाँ कुछ नही था वहाँ से भी उन्होने ऐतिहासिक सामग्री का यह बड़ा सुमेरु खड़ा कर दिया है । अपने देश में यदि उचित रीति से ऐतिहासिक अनुसंधान का कार्य किया जाय तो कितनी अपरिमित सामग्री संकलित की जा सकती है, इसका सुन्दर दृष्टान्त विनय सागर जी का यह प्रयत्न है । मेरा अनुभव है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, मालवा, गुजरात आदि विस्तृत भूभाग के सब मंदिरों की छानबीन की जाय तो ऐसे मूर्ति-लेखों की संख्या : बारह सौ क्या, बारह सहस्र तक पहुंच सकती है। जैन इतिहास और साहित्य के समृद्ध भण्डार का सचमुच कोई अन्त नहीं जान पड़ता । जैन-भण्डारों से जैन ग्रन्थराशि हाल में ही प्रकाश में आई है उसने देश के विद्वानों को आश्चर्य में डाल दिया है। अभी तो इन भण्डारों की कुञ्जियाँ खुलने का प्रारम्भमात्र ही हुआ है । इन भण्डारों में मानों प्राकृत, अपभ्रंश प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि देश्य भाषाओं के सहस्रों ग्रन्थों की पर्वताकारराशि ही भारतीय - साहित्य के गोप्ता किसी अधिदेवता ने हमारे सामने लाकर पूजीभूत कर दी है। इस प्रकार साहित्य और इतिहास के क्षेत्रों में काम करने वाले भारतीय विद्वानों के सामने बीसवीं शती के उत्तराधं भर करते रहने के लिये कार्य का पुष्कल अंश सामने आगया है । कलकत्ते से जैसलमेर तक एवं अमृतसर अम्बाला से दक्षिण के For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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