Book Title: Pratishtha Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar

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Page 16
________________ -११ इन लेखों में कुछ संक्षिप्त चिह्न भी बार बार प्रयुक्त हुए हैं, जैसे व्यव० ( व्यवहारिक ), सा० ( साहु ), श्रे० ( श्रेष्ठि ) ठा० ( ठक्कुर ), सु० ( सुत), पु० (पुत्र), भा० ( भार्या ), श्रे०सु० ( श्रेष्ठि सुत ), प्र० ( प्रतिष्ठापितं ) इत्यादि । संक्षेप चिह्नों के सामने बिन्दी लगाने की प्रथा लेखक की इच्छा पर निर्भर थी, क्योंकि कितनी ही बार बिन्दी के बिना भी वे लिखे गए हैं। भारतीय स्थापत्य शास्त्र की दृष्टि से इन लेखों में उत्तानपट्ट ( लेख ३०), नागमयूर पहिका ( लेख १६८), नवपदयंत्र ( लेख १०१६ ), चन्द्रक ( लेख २६ ) आदि कई पारिभाषिक शब्द प्रयुक्त हुए हैं जिनको चित्रों द्वारा समझा जा सकता है । काशी विश्वविद्यालय ७-१०-५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only वासुदेव शरण www.jainelibrary.org

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