Book Title: Praman Mimansa
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 11
________________ प्रमेयविषयकवाद ३५६ अविभाज्य ही है । ऐसी दशा में जो बाह्यत्व-श्रान्तरत्व, हृस्वत्व-दीर्घत्व, दूरत्वसमीपत्व आदि धर्म-द्वन्द्व मालूम होते हैं वे मात्र काल्पनिक हैं । अतएव इस वाद के अनुसार लोक सिद्ध स्थूल विश्व केवल काल्पनिक और प्रातिभासिक सत्य है । पारमार्थिक सत्य उसकी तह में निहित है जो विशुद्ध ध्यानगम्य होने के कारण अपने असली स्वरूप में प्राकृतजनों के द्वारा ग्राह्य नहीं। न्याय वैशेषिक और पूर्व मीमांसक आरंभवादी हैं। प्रधान परिणामवाद सांख्ययोग और चरक का है । ब्रह्म परिणामवाद के समर्थक भर्तृप्रपञ्च आदि प्राचीन वेदांती और आधुनिक बल्लभाचार्य हैं। प्रतीत्यसमुत्पादवाद बौद्धों का है और विवर्तवाद के समर्थक शांकर वेदान्ती, विज्ञानवादी और शून्यवादी हैं। ऊपर जिन वादों का वर्णन किया है उनके उपादानरूप विचारों का ऐतिहासिक क्रम संभवतः ऐसा जान पड़ता है-शुरू में वास्तविक कार्यकारणभाव की खोज जड़ जगत तक ही रही । वहीं तक बह परिमित रहा । क्रमशः स्थूल के उस पार चेतन तत्त्व की शोध-कल्पना होते ही दृश्य और जड़ जगत में प्रथम से ही सिद्ध उस कार्य कारण भाव की परिणामिनित्यतारूप से चेतन तत्त्व तक पहुँच हुई । चेतन भी जड़ की तरह अगर परिणामिनित्य हो तो फिर दोनों में अंतर ही क्या रहा ? इस प्रश्न ने फिर चेतन को कायम रखकर उसमें कूटस्थ नित्यता मानने की ओर तथा परिणामिनित्यता या कार्यकारणभाव को जड़ जगत तक ही परिमित रखने की ओर विचारकों को प्रेरित किया। चेतन में मानी जानेवाली कूटस्थ नित्यता का परीक्षण फिर शुरू हुआ। जिसमें से अंततोगत्वा केवल कूटस्थ नित्यता ही नहीं बल्कि जड़ जगत की परिणामिनित्यता भी लुप्त होकर मात्र परिणमन धारा ही शेष रही। इस प्रकार एक तरफ आत्यतिक विश्लेषण ने मात्र परिणाम या क्षणिकत्व विचार को जन्म दिया तब दूसरी ओर आत्यंतिक समन्वय बुद्धि ने चैतन्यमात्र पारमार्थिक वाद को जन्माया । समन्वय बुद्धि ने अंत में चैतन्य तक पहुँच कर सोचा कि जब सर्वव्यापक चैतन्य तत्त्व है तब उससे भिन्न जड़ तत्त्व की वास्तविकता क्यों मानी जाए ? और जब कोई जड़ तत्त्व अलग नहीं तब वह दृश्यमान परिणमन-धारा भी वास्तविक क्यों ? इस विचार ने सारे भेद् और जड़ जगत को मात्र काल्पनिक मनवाकर पारमार्थिक चैतन्यमात्रवाद की स्थापना कराई। उक्त विचार क्रम के सोपान इस तरह रखे जा सकते हैं१-जड़मात्र में परिणामिनित्यता । २--जड़ चेतन दोनों में परिणामिनित्यता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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