Book Title: Prakrut Prashna Garbha Panch Parmeshthi Stava
Author(s): Nalini Balbir
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ७४ अनुसन्धान ५० (२) कथाए इत्यादि संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिन्दी में उपलब्ध हैं । समस्त मन्त्र के पदों की संभाव्य संख्या, "हवई"/"होइ" पाठ की चर्चा और उसके पद्माकार में चित्रित रूप पर वाद-विवाद प्रचलित हैं । प्रश्नगर्भ-पंचपरमेष्ठि-स्तव एक ऐसा ग्रन्थ है जो प्रश्नोत्तर के रूप में नमस्कार मन्त्र का महत्त्व प्रस्तुत करता है। इस में माहाराष्ट्री जैन प्राकृत के ६ पद्य हैं। उनमें से पहले पांच (छन्दस्रग्धरा) अलग-अलग प्रश्नोत्तर प्रस्तुत करते हैं । अर्हत्-सिद्ध-आचार्यउपाध्याय तथा साधु के नमस्कार मन्त्र का हरेक भाग ढूढना इनका लक्ष्य है। _ नमो अरिहन्ताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं । __ स्तव का अन्तिम पद्य (छन्द-शार्दूलविक्रीडित) फलश्रुति का द्योतक है। नमस्कार महामन्त्र की चूलिका पर (एसो पंचनमोक्कारो) स्तव में कुछ नहीं मिलता । यह स्तव विनोदी और उपदेशात्मक रीति में मौलिक प्रकार से पंचनमस्कार मन्त्र के शब्दों और पदों को रेखाङ्कित करता है और साथ ही कुछ सिद्धान्त परिकल्पनाओं का प्रदर्शन करते हुए उसके महत्त्व का और उसकी मन्त्रप्रकृति का उल्लेख करता है। प्रश्नोत्तर खेल विनोद के लिए भाषा के खेल ही नहीं है । किसी नाम का अन्वेषण उनका लक्ष्य हो सकता है । प्रेम के सन्दर्भ में वे नाम प्रेमपात्र के हैं । धार्मिक सन्दर्भ में (उदाहरणतः विज्ञप्तिपत्रों में) वे गुरु के नाम, उनके मातापिता के नाम या उनके जन्मस्थान के नाम हो सकते हैं। इस प्रकार पहेलियाँ आदरणीय व्यक्ति के प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति करने की एक विधि हैं । पहेलियाँ आदरणीय व्यक्ति के प्रति भक्ति की ३. प्रेमविषयक और धर्मविषयक जैन प्रश्नोत्तरों के बारे में देखिए Nalini Balbir, “Theorie et pratique de la devinette en miliu jaina. I. Les Cent soixante et une devinettes de Jinavallabha. II. Devinettes en contexte", Bulletin d'Etudes Indiennes 20.2 (2002), pp. 83-243; “Grammatical riddles in Jain literature” in Jambū-jyoti (Muni Jambūvijaya Festschrift), ed. M. A. Dhaky & J. B. Shah, Ahmedabad, 2004, pp. 269-309; “Gurubhakti through word-puzzle in the Jain context" in Vani-jyotih 17-18 (Prajnana-Mahodadhih, Prof. Dr. Gopinath Mohapatra Felicitation Volume), Department of Sanskrit, Utkhal University, Bhubaneswar, 2003, pp. 181-203.

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