Book Title: Prakrut Prashna Garbha Panch Parmeshthi Stava Author(s): Nalini Balbir Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ मार्च २०१० ७७ हुई है । हस्तप्रत-वर्णन के लिए देखिए H. R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the Government Collections deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Volume XIX, Part I, Poona, 1957 पृ. ३५४-३५६ । ल' - यह हस्तप्रत लन्दन में India Office Library (British Library) का है । क्रमसंख्या I. O. San. 25727(E); पंचपाठ; पत्रसंख्या १; परिमाण २५ x १०; पंक्तियाँ १४ । रचनासमय और लेखनसमय नहीं दिये हैं। लिपि स्पष्ट है । सीधी तरफ के मध्य में अष्टदल कमल का रेखाचित्र है जिसमें पांचवे श्लोक की पहेलियों के उत्तर लिखे हैं । परिसरों में वृत्ति लिखी है परन्तु वह थोड़ी-बहुत नष्ट हो गई है इसीलिए अपूर्ण है । हस्तप्रत-वर्णन के लिए aray Nalini Balbir, Kanubhai V. Sheth, Kalpana K. Sheth, C. B. Tripathi, Catalogue of the Jaina Manuscripts of the British Library, London : British Library & Institute of Jainology, 2006, नं. ९२० । प्रश्नगर्भ-पंचपरमेष्ठि-स्तव के बाद इन दोनों हस्तप्रतों में एक दूसरा ग्रन्थ है । इन दोनों में ही इस ग्रन्थ का नाम वर्धमान-स्तोत्रम् समस्यामयम् दिया गया है। प्राकृत में लिखे इस ग्रन्थ में १२ श्लोक हैं और उसकी व्याख्या संस्कृत में है। प्रश्नोत्तर के स्थान पर यह स्तोत्र समस्यापूरण के रूप में आता है । दोनों हस्तप्रतों में इस दूसरे ग्रन्थकार एक जयचन्द्रसूरि है । जयचन्द्रसूरिकृतम् (पू०) भट्टारक-प्रभु-श्रीजयचन्द्रसूरिपाद-प्रणीतम् इदं (ल०) इसके विपरीत प्रश्नगर्भ-पंचपरमेष्ठि-स्तव की प्रशस्तियाँ कम स्पष्ट हैं। जयचन्द्रसूरि का नाम केवल पू० हस्तप्रत की वृत्ति के अन्त में आता है। यह सम्भव है कि जयचन्द्रसूरि इन दोनों स्तोत्रों के ग्रन्थकार हैं । पर यह जयचन्द्रसूरि कौन से हैं और उनका समय क्या है इस विषय पर कोई सूचना नहीं मिली है। ८. देखिए साराभाई नवाब, जैनस्तोत्रसंदोहस्य द्वितीयभागः ।Page Navigation
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