Book Title: Prakrit ka Jain Agam Sahitya Ek Vimarsh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 17
________________ Jain Education International . श्रुत (आगम) 1. For Personal & Private Use Only प्राकृत का जैन आगम साहित्य : एक विमर्श /15 (क) अंगप्रविष्ट आचारांग सूत्रकृतांग 3. स्थानांग समवायांग ____ व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशांग 8. अन्तकृद्दशांग अनुत्तरौपपातिकदशांग 10. प्रश्नव्याकरण 11. विपाकसूत्र 12. दृष्टिवाद (ख) अंगबाह्य . (ख) आवश्यक व्यतिरिक्त (क) आवश्यक | (क) कालिक (ख) उत्कालिक 1. सामायिक उत्तराध्ययन 31. वृष्णिदशा 2. चतुर्विंशतिस्तव | 2. दशाश्रुतस्कन्ध 1. दशवैकालिक 3. ' वन्दना 3. कल्प 2. कल्पिकाकल्पिक 4. प्रतिक्रमण व्यवहार चुल्लककल्पश्रुत कायोत्सर्ग निशीथ महाकल्पश्रुत प्रत्याख्यान महानिशीथ निशीथ ऋषिभाषित राजप्रश्नीय 8. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति जीवाभिगम 9. द्वीपसागर प्रज्ञप्ति 8. प्रज्ञापना 10. चन्द्रप्रज्ञप्ति 9. महाप्रज्ञापना 11. क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति 10. प्रमादाप्रमाद महल्लिकाविमानप्रविभक्ति 11. * नन्दी 13. अंगचूलिका 12. अनुयोगद्वार 14. वग्गचूलिका 13. देवेन्द्रस्तव G - www.jainelibrary.org

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