________________ आज भी एक प्रामाणिक ग्रन्थ के रूप में मान्य किया जाता है। इसके पश्चात्, प्रो. जगदीशचन्द्र जैन का ग्रन्थ, 'प्राकृत साहित्य का इतिहास' भी इस क्षेत्र में दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान द्वारा जैन साहित्य का बृहद् इतिहास योजना के अन्तर्गत प्रकाशित प्रथम तीनों खण्डों में प्राकृत आगम-साहित्य का विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है। इसी दिशा में आचार्य देवेन्द्रमुनिशास्त्री की पुस्तक 'जैनागम : मनन और मीमांसा' भी एक महत्त्वपूर्ण कृति है। मुनि नगराजजी की पुस्तक 'जैनागम और पाली–त्रिपिटक भी तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, पं. कैलाशचन्द्र जी द्वारा लिखित "जैन साहित्य के इतिहास की पूर्व पीठिका" में अर्द्धमागधी आगम साहित्य का और उसके प्रथम भाग में शौरसेनी आगम साहित्य का उल्लेख हुआ है किन्तु उसमें निष्पक्ष दृष्टि का निर्वाह नहीं हुआ है और अर्द्धमागधी आगम साहित्य के मूल्य और महत्त्व को सम्यक प्रकार से नहीं समझा गया पूज्य आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी ने 'जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन' कृति की सृजना जनसाधारण को आगम–साहित्य की विषय-वस्तु की परिचय देने के उद्देश्य से की है, फिर भी उन्होंने पूरी प्रामाणिकता के साथ संशोधनात्मक दृष्टि को भी निर्वाह करने का प्रयास किया है। इस ग्रन्थ की मेरी भूमिका विशेष रूप से पठनीय है। . प्राकृत का जैन आगम साहित्य : एक विमर्श / 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org