Book Title: Prakrit Jain Katha Sahitya
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 4
________________ प्राक्कथन श्री लालभाई दलपतभाई व्याख्यानमाला का शुभारम्भ सर्वधर्मसमन्वय के विषय में ता. ३१-३-६६ के दिन व्याख्यान देकर पूज्य श्री काका कालेलकर ने किया था । तदनन्तर व्याख्यान माला में 'प्राकृत जैन कथा साहित्य' इस विषय को लेकर डा. जगदीशचन्द्र जैन के जो तीन व्याख्यान ता. ७-९-७० से ता. ९-९-७० को हुए वे यहाँ मुद्रित किये गये हैं। डा. जगदीशचन्द्र जैन को यनिवर्सिटी ग्रान्ट कमीशन की ओर से इसी विषय में संशोधन करने के लिए निवृत्त प्राध्यापकों को दिया जानेवाला पुरस्कार मिला था और वे इसी विषय में रत थे। अतएव मैंने यही विषय को लेकर उनको व्याख्यान देने का आमन्त्रण दिया । वे इन्डोलोजी के प्राध्यापक होकर कील युनिवर्सिटी (जर्मनी) में जाने की तैयारी कर रहे थे । फिर भी उन्होंने मेरे आमन्त्रण को सहर्ष स्वीकार करके ये व्याख्यान लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर में दिये एतदर्थ मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ । प्राकृत जैन कथा साहित्य के विषय में डा. विन्टरनिट्स, डा. हर्टल आदि ने जो अभिप्राय दिया है वह यथार्थ है इसकी प्रतीति प्रस्तुत पुस्तक से हो जायगी । इसमें भी समग्रभाव से कथा साहित्य का परिचय संभव नहीं था, यहाँ तो उसमें से कुछ नमूने दिये हैं-ये यदि विद्वानों का इस विषय में विशेष आकर्षण कर सकेंगे तो व्याख्याताका और हमारा यह प्रयत्न हम सफल समझेंगे । व्याख्याताने विशेषरूपसे यहाँ वसुदेवहिण्डी और बृहत्कथासंग्रह इन दोनों की कथाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है । विद्वानों की यह तो सम्भावना थी कि वसुदेवहिण्डी की कई कथाओं का मूल बृहत्कथासंग्रह में होना चाहिए । उस संभावना की पुष्टि विशेष रूपसे यहाँ की गई है । विद्वानों का ध्यान मैं इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। ला. द. विद्यामंदिर निवेदक अहमदाबाद-९ दलसुख मालवणिया अध्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 210