Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 10
________________ दो शब्द वैसे तो डॉ. चन्द्र ने यह व्याकरण शैक्षणिक दृष्टि से प्राकृत भाषा के प्रारम्भिक एवं उच्चस्तरीय विद्यार्थियों के लिये तैयार किया है, फिर भी इसकी कुछ विशेषताएँ हैं । विषय के निरूपण में उन्होंने तुलनात्मक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाया है तथा विद्यार्थियों का स्तर ध्यान में रखते हुए जहाँ हो सके वहाँ इस विषय के आधुनिक तथ्योंका यथाशक्य समावेश किया है । अद्यतन ज्ञानसामग्री का लाभ उठाकर नये पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण हमें करते रहना चाहिये । इसके लिये अध्यापनकार्य का समुचित अनुभव भी आवश्यक है । प्रस्तुत प्रयास इस दृष्टि से भी सराहनीय है। इसकी उपयुक्तता का निर्णय तो अभ्यास के वर्गों में ही किया जा सकता है । प्रशिष्ट भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन को बनाये रखने के लिए ऐसे छोटे प्रयास भी बड़े मूल्यवान होते हैं। ह. चू. भायाणी अहमदाबाद दिसम्बर १, १९८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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