Book Title: Prakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran Author(s): K R Chandra Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad View full book textPage 9
________________ अपभ्रंश को साथ साथ लिया गया है और यही पद्धति आठवें अध्याय तक अपनायी गयी है। ऐसा करने के पीछे यही उद्देश्य था कि एक बार विद्यार्थी का प्राकृत भाषा में प्रवेश हो जाय तो बाद में उसे तुलनात्मक पद्धति से पढ़ने में सुविधा होगी। इस पुस्तक को तैयार करने में एवं सामग्री जुटाने में अनेक ग्रंथों एवं लेखों का उपयोग किया गया है और जिन जिन लोगों ने सलाह-सूचन दिये हैं उन सब का मैं हार्दिक आभार मानता हूँ। इस क्षेत्र में डॉ. ह.चू.भायाणी से हमेशा ही प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता रहा है और उन्होंने अपने बहुमूल्य समय में से थोड़ा सा समय निकाल कर जो 'दो शब्द' इस पुस्तक के विषय में लिखे हैं उसके लिए भी मैं उनका आभारी हूँ। प्राकृत विद्यामंडल का भी मैं आभारी हूँ जिसने इस पुस्तक को प्रकाशित करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है । श्री स्वामिनारायण मुद्रण मंदिर का भी आभार मानता हूँ जिसने इस पुस्तक को मुद्रित किया है । अन्त में प्रस्तुत पुस्तक में जो भूलें एवं क्षतियाँ रह गयी हो उन्हें विद्वान लोग मेरे ध्यान में लाने की कृपा करेंगे ऐसी मेरी उनसे विनंति है । जनवरी २, १९८२ के. आर. चन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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