Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2 Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ नमारा करी गयाने ते अद्यापि विद्यमान डे; अने तेथीज हाल केटलाएक पुरातन ग्रंथोनु थापणने दर्शन थायजे. तथापि मात्र दर्शन करवाथीज काई वलवा- नथी, प । योग्यरीते उपयोग कस्याथी कार्यसिदि थवानो संनवले. जेम पूर्व धर्मानिमानी रा जा वगैराउए ज्ञान नंमारा कस्याले तेम पाउल थयुं नथी. ए मोटी दिलगीरीनी वात ३. जो एवो चालज पडी गयो होत तो एके ग्रंथ विछेद गयो न होत बने थाटलो झाननी न्यूनता पण थई न होत. जुवोके, देरासरनो जीर्णोद्धार करवानो चाल पडी गयो तो तेनी संतति विजेद गएली देखाती नथी. तेमज ग्रंथोविषे चाल पडवो जोयेने. केमके ग्रंथोनो जीर्णोधार तो ज्ञाननी वृदिनु एक मुख्य कारण ले. दालना समयमां ग्रंथोनो जीर्णोद्धार करवाना जेवांसाधनो मलीयावे तेवां थाग ल कोई वखते पण नहोता. पहेला प्रथम ग्रंथोनो जीर्णोधार तालपत्र पर थएलो देखायडे, ने त्यार पढी कागल पर थयो रे ते अद्यापि सिम बे. परंतु ते हस्तक्रिया विना यंत्रादिकनी सहायताथी थरलो नथी. ने हाल तो मुझयंत्रनी थति उत्कृष्ट स हायता मली धावेने, तेनो उपयोग करवानुं मूकी दर्शने बालस करी बेशी रहेगुं तो ग्रंथो केम कायम रहेशे ? हाल विद्यान्यास करीने नवा नवा ग्रंथोनी रचना करवी तो एक कोरे रही, पण बतीशक्तिये पुरातन ग्रंथोनी रक्षा करवानो यत्न नही करमु तो आपणेज ज्ञानना विरोधी ठरलॅ. केमके जे जेनी रक्षा करे नही ते तेनो विरोधी अथवा अहितकर होय. ए साधारण नियम थापणी पर लागु पडशेः __श्रावक नाईयो, पुरातन ग्रंथोनो जीर्णोधार कस्याथी ते ग्रंथोनुं अवलोकन थशे, प्रयाशविना केटलोएक विद्यान्यास थशे, रस उत्पन्न थईने ज्ञान संपादन करवानी अंतःकरणमा उत्कंठा थशे. शु६ धर्म ऊपर प्रीति वधशे, अनिरुचि एट ले पुनःपुनः ज्ञान मेजववानी बा थशे, अने उद्योग प्रमुख सर्व ज्ञानना साधनोनो सहज प्राप्त थशे. उद्योग ए सर्व पदार्थ मेलववानुं अथवा वृद्धि करवानुं मुख्य साधन डे; परंतु अमस्ता उद्यमयीज कांई थई शकतुं नथी. तेनी साये इव्यनी पण सहायता जोये. इव्य जे जे ते सर्वोपयोगी पदार्थ जे. माटे इव्यवान पुरुषोए थव श्य ए काम ऊपर लद देवो जोयेजे. केमके, तेउनी ए फरज ने के, जेम बने तेम झाननी वृद्धि करवी जोयेले. ते याप्रमाणेः- सारा सारा पंमितोनी मारफते प्राचीन ग्रंथो सुधारी लखावी अथवा उपावीने प्रसिह करवा. तेनो नाविक लोकोने थन्या स कराववोः इत्यादिक शास्त्रोमां कह्या प्रमाणे सर्व प्रकारे छाननी वृद्धि करवी. एवा हेतुथीज में था ग्रंथो उपाववानुं काम हाथमां लीधुं बे, परंतु कोईनी सहायता विना स्वतंत्र मारी मरजी प्रमाणे ढुं ग्रंथो उपावी शकुं एवी मारीपाशे इव्यनी शक्ति नही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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