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संवेगी साधु श्री नितीविजयजी महाराज एनो ज्ञान वृद्धि अर्थे सारो उद्योग होवाथी प्रथम नागनी पते नामस्मरण गुंथित करूं बं:
संवेगी साधु साध्य वस्तु साधनोद्युक्त युक्त मतिमान जिनवचन समुमाथी जलद वत ग्रहीत धर्माकाशस्थित जलवृष्टि वत् झान वृद्धि कर्त्ता; संवेगी साधु गु६ सम्यक्त्व पदारथ, परम सुविहित सुसाधु मंगल माल प्रोहीत. ज्ञानादि शुद्ध जिनधर्मागति प्रयत्नवान. श्रीशांति सागरजी महाराजनुं नामस्मरण गुंथित करुंडं
जन वृंद वंद्य अचल गन्हाचार्य नहारक श्रीविवेक सागर सूरि, एमर्नु पूर्वनागनी पठे नाम स्मरण गुंथित करुं बुं;
मनुष्य पुंज पूज्य तप गहाधिपति जट्टारक श्री धरणेंइसूरि, एमर्नु नाम स्मरण गुंथित करुं बुं;
श्री हुकमचंजी महाराज, में प्रथम नागमा नाम स्मरण गुंथन कयुं ने तेमज थो पण गुंथित करुं बुं..
प्रवचन रहस्य ज्ञाता, कोविद मतिमान, अनुत चपल वक्तृत्वशक्तियुक्त, स्वरूपसा गरवित् श्रीरूपसागरजीतुं नाम स्मरण गुंथित करूं ढुं;
शुक्ष वीतराग परुपित, जिनधर्म विनति युक्त श्रीअहमदावाद नगर निवाशी सर्व श्रावक मंगल जन जूप समान अत्यंत लक्ष्मि संपत्तिवान पूर्वज परंपरा श्रेणि श्रागत श्रीमान उत्तम श्रदान सहवर्तमान तथा धर्मदीपक श्रेष्ट मयानाई प्रे मानाईनु नामस्मरण पुनः मुंथित करूं बूं.
बीजा पण जे जे सहदिमान पुरुषोए धर्म प्रनावना दर्शाववा निमित्ते स्वसामर्थ्या नुसार ज्ञानवृद्धि हेतुथी जे उदारता दर्शावो ने तेयोनां नामस्मरणार्थ पुस्तकना अंत नेविषे गुंथित थशे.
दमापना.
प्रथम नाग मध्ये मतिदोषथी तत्वानुबोध नामनो ग्रंथ जे पृष्ट ७३१ थी ७५६ सुधीमा नाखवामां आव्युं वे ते स्थानकवासी रतनचंदनो करेलो बतां लखेली प्रतमा ते, न जणायाथी नूलथी पाई गयो ने. एटला माटे ढुं सर्व सुबुदिवान वाचको पाशे थी दमा मांगु बूं के अंकित ग्रंथना मुख पृष्टमां. सुविहित गीतार्थ रचित ग्रंथो ज नाखवानी में प्रतिज्ञा करेली ले तेने कोई दूषण थापशो नही. केम के, हरेक
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