Book Title: Prakarana Ratnakar Part 2
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ G मोटो उपकार मानीश ? केमके, जो दोष दर्शावनार नही मले तो दोष दीगमां केम यावे? गुणग्राहकनी क्षमारूप श्रमृत धाराथी यद्यपि गुलनी पुष्टी थायडे, तथापि दोष ग्राहकनी कुमतिरूप कुठार धाराथी बुद्धि बिन्न निन्न थने तेने प्रदोषता करवाविषे घणा प्रयत्नमां प्रवृत्ति थायले, तेथी तेनो पण उपकार मानवा योग्य बे. माटे सर्व सत न तथा कुष्ट पुरुषोनी विनति करूं बुं के, यथा स्वमति अनुसार गुणदोष विचार करीने मादिक कर. शा० नीमसिंद मालक. Jain Education International प्रार्थना. 1000000 या पुस्तक वांचनारा धने जणनारा प्रमुख सर्व ज्ञानना रागी घने विवेकी सुझ जनने प्रति नम्रतापूर्वक हुं याचना करूंतु के, या प्रकरण रत्नाकरमांना कोई प्रकर मां अंतरवृत्तिजन्य दोषथी, बाह्यदृष्टि दोषथी अथवा प्रज्ञान प्रक्रियाने लीधे कांई जैननी सैलीथी विपरीतता अथवा सांशयिक दीगमां यावे तो ते विषे कोप न करतां सर्व लखी लईने ते मने मोकलावी देवुं, के जेथी ते सुधारीने कोई प्रसंगे विरोधनो परिहार करवामां यावे. जेम के, प्रथम नागमां नाखेला उपमितिनवप्रपंचनी कथा मां सुंदरने अवधिज्ञान उत्पन्न यया पती घनंत काल निगोदमां रही धाव्यो ब तां ते सर्व वात स्मरणमां श्रावी बे. ए सांशयिक उक्ति बे; इत्यादिकनी पते ज्यां ज्यां दीगमां श्रावे त्यां त्यांथी लखी लईने जो बने तो तेना विवेचनसुद्धां अथवा एमज मने सूचना करवी एवढुं तेमनी प्रार्थना करूंतु, घने एम कस्याथी मोटो उपका रमान्यामां श्रावशे. शा० नीमसिंह माणक. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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