Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana Author(s): Shitalprasad Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 6
________________ (४) हमें विदित होता है कि इन तीनों जिलोंमें सकारद्वारा बहुत कम खोज हुई है। यदि .विशेष .सोज की जावे तो जैनियोंके और भी स्मारक मिल सक्ते हैं। जो कुछ मिले हैं उनसे यह तो स्पष्ट है कि जैनियोंका प्रभुत्व बहुत अधिक व्यापक या व अनेक राजाओंने जैनधर्मकी भक्तिसें अपने आत्माको पवित्र किया था। जनियोंचा कर्तव्य है कि अपने स्मारकोंको जानकर उनकी रक्षाचा उपाय करें। इस पुस्तक प्रकाश होनेमें द्रव्यनी खास सहायता रायबहादुर साहू जगमंघरदासनी रईस नजीबाबादने दी है इसके लिये हन उनके आभारी हैं। १०-६-१६ जनधर्मका प्रेमी-७० सीतलप्रसाद।Page Navigation
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