Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ *60801803%€DENIEODX # उपोद्घात । REECE EDCODE03%E0C00302 __इस पुस्तकके लिखनेका उद्यम सेठ वैजनाथ सरावगी मालिक फर्म सेठ जोखीराम मूंगराज नं० १७३ हरिशनरोड कलकत्ताकी प्रेरणासे हुआ है। इसके पहले बंगाल, विहार, उड़ीसा, संयुक्तप्रांत व बम्बई प्रांतके तीन स्मारक प्रगट हो चुके हैं । इस पुस्तकमें मध्यप्रदेश, मध्यभारत और राजपूतानाके जैन स्मारक जो कुछ 'सर्कारी रिपोर्टसे माल्लम हुए हैं उनका संग्रह कियागया है। मध्यप्रदेशके हरएक निलेका वर्णन जाननेके लिये पुस्तकोंकी सहायता नागपुर म्यूनियमके नायब क्यूरेटर मि० इ० ए० डिरोबू एफ० झेड० एस० तथा मि० एम० ए० सुबूर एम० एन० एस० क्वाइन एक्सपर्टने दी जिनके हम अतिशय आभारी हैं । मध्यभारत और राजपूतानाके सम्बन्धमें अनेक पुस्तकोंके देखनेकी सहायता रायबहादुर पंडित गौरीशंकर ओझा क्यूरेटर म्यूनियम अजमेरने दी जिनके भी हम अति आभारी हैं | Imperial Gazetteer इम्पीरियल गजेटियर आदि पुस्तकोंकी सहायता व एपिग्रेफिका आदि पुस्तकोंके देखनेमें मदद इम्पीरियल लाइबेरी कलकत्ता तथा बम्बई रायल एसियाटिक सोसायटी लाइब्रेरी बम्बईसे प्राप्त हुई है जिनके भी हम अति कृतज्ञ हैं। इस पुस्तकके पढ़नेसे ज्ञात होगा कि जैनियोंके मंदिर व उनमें स्थापित बड़ी २ मूर्तिये उन स्थानोंमें जैनियोंके न रहनेसे सब किस अविनयकी दशामें हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 185