Book Title: Poojan Vidhi Samput 02 Siddhachakra Mahapoojan Vidhi Author(s): Maheshbhai F Sheth Publisher: Siddhachakra PrakashanPage 29
________________ संस्थापनम् : स्थापनीमुद्राए स्थापन करवू । श्रीअर्हदादि-समलङ्कृत-सिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहन-मुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वेऽपि तिष्ठत सुखेन निजासनेषु ।। ठः ठः ।।२।। संनिधानम् : संनिधापनीमुद्राए संन्निधान करवू । श्रीअर्हदादि-समलङ्कृत-सिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहन-मुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाच, सर्वेऽपि मे भवत सन्निहिताः प्रमोदात् ।। वषट् ।।३।। संनिरोधनम् : संनिरोधनीमुद्राए सन्निरोध करवो । श्रीअर्हदादि-समलङकृत-सिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहन-मुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, स्थातव्यमेव यजनावधिरत्र सर्वैः ।। |४|| अवगुंठनम् : अवगुंठनी मुद्राए अवगुंठन करवू ।। श्रीअर्हदादि-समलङ्कृत-सिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहन-मुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वे भवन्तु परदेहभृतामदृश्याः ।। फट् ।।५।। ૨૫Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60