Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 10
________________ निदा योग्य अवसर आने पर 'मै इसका उत्तर दूंगा ऐसा सोच उसने मौन रखा । कुछ वर्ष तक कलाचार्य के पास अध्ययन कर दोनों अपने अपने घर आ गये । बदले की भावना से मयंक ने अपने पिता को कहकर पद्मावती के साथ विवाह कर लिया । दोनों सुख पूर्वक रहने लगे। एक दिन मयंक सागरदत्त नामक पोतवाहक के साथ व्यापारार्थ समुद्रीयात्रा के लिए निकला। साथ में अत्यन्त आग्रह से अपनी पत्नी पद्मावती को भी ले लिया । कई दिनों की यात्रा के पश्चात् उनकी नौका समुद्र के बीच मानवरहित राक्षसद्वीप पर आ पहुंची। मयंक ने अपने साथियों के साथ यहीं रात्रि विश्राम करने का विचार किया । सभी यात्री द्वीप पर उतर गये । सायंकाल में मयंक पद्मावती को साथ में लेकर उस द्वीप की प्राकृतिक छटा को दिखाता हुआ वह उसके साथ एक घने जंगल में पहुंचा । थकी होने के कारण पद्मावती वृक्षपल्लवों की शय्यापर अपने पति के साथ सो गई । मयंक को पद्मावती से बदला लेने का अच्छा अवसर मिला । उसने ५० कोड़ियां उसके वस्त्र के आंचल में बांधकर उसके साथ एक पत्र भी लिखकर रख दिया । वह उसे गहरी में छोडकर चिल्लाता हआ नाविकों की और भागा और बोला-पद्मावती को एक राक्षस ने मार डाला है और हमें भी मार डालेगा - इस प्रकार नाविकों को डराता हुआ वह उन्हें अपने साथ ले कर वहां से चल पडा । __ कुछ समय के बाद पद्मावती जागी तो उसने अपने पति को अपने पास नहीं पाया । वह उसे ढूंढ़ने लगी । बहुत खोज करने पर भी उसे न पाकर भयभीत होकर करुण क्रन्दन करने लगी। सहसा उस की दृष्टि अपने आंचल की गांठ पर पडी। उसे खोल कर देखा तो ५० कोडियों के साथ एक पत्र भी था । पत्र में लिखा था "इन ५० कोड़ियों से अपने योग्य वस्त्र और अलंकार बना लेना।" पत्र पढ़कर उसे बडा दुःख हुआ। वह समुद्र के किनारे आई । उंचे टीले पर एक वृक्ष के ढूंठ पर उसने वस्त्र बांध दिया और उस तरफ आनेवाले यात्रियों की राह देखने लगी । अपना समय व्यतीत करने के लिए उसने मिट्टी की भ.ऋषभजिन की प्रतिमा बनाई । वह उसकी त्रिकाल अर्चना और जिनभगवान द्वारा प्ररूपित तत्वों का चिन्तन करती हुई अपना समय व्यतीत करने लगी। किसी द्वीप की ओर जाते हुए एक दिन पद्म नामक सार्थवाह मानव शुन्य राक्षस द्वीप में वस्त्र की पताका देखकर द्वीप पर उतरा । वहां मानव पद चिन्हों का अनुसरण करता हुआ वह पद्मावती के पास पहुंचा। पद्मावती से उसने सारी घटना सुनी । उसे दया आई । आश्वस्त कर उसे साथ ले कर पद्मसार्थवाह अन्य द्वीप के लिए चल दिया। मार्ग में पद्मावती से उसने अनुचित याचना की । पद्मावती ने धर्म विरुद्ध आचरण न करने के लिए उसे खूब समझाया परन्तु वह अपनी जिद्द पर अटल रहा । समुद्रमें तुफान आया । पद्मसार्थवाह की नौका टूट गई । वह अपनी नौका के साथ समुद्र में डूब गया । एक टूटे हुए काष्ट खण्ड का सहारा लेकर पद्मावती समुद्र में तैरने लगी । उस समय एक खेचर आकाश मार्ग से जा रहा था । उसकी दृष्टि समुद्र में तैरती हुई पद्मावती पर पडी । उसने उसे उठाकर अपने विमान में बैठा दिया । खेचर भी पद्मावती के रूप पर मुग्ध था । उसने उसे अपनी पत्नी बनाने का प्रस्ताव रखा । उसने उसका प्रतिकार किया और उसे उपदेश दिया । पद्मावती के उपदेश से प्रभावित हो उसने उसे अपनी बहिन मान लिया । उस पर प्रसन्न होकर अदृश्य करण अंजन, परविद्या छेदनविद्या और रूपपरावर्तन नामकी तीन विद्याएँ उसे दी और उसे सुंसुमार पुरके उद्यान में छोड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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