Book Title: Paryushan Aur Kesh Loch
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 5
________________ सकते हैं-आदि आदि। परंतु यदि साधक असमर्थ है, लोच उसे असह्य है, तथा शिर में कोई रोग है, मंद चक्षु है-अर्थात् नेत्रों की ज्योति क्षीण है, या क्षीण होने की संभावना है, बीमार है - दुर्बलता के कारण लोच नहीं हो सकता है, अथवा दुर्बल स्थिति में लोच करने पर ज्वर आदि होने की संभावना हो, दीक्षित यदि बालक हो-लोच करने पर रोने लगता हो, तो ऐसी स्थिति में लोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि बलात् लोच की क्रिया में धर्म भ्रष्ट होने की संभावना है। अतः प्राचीन जैन दर्शन का अभिमत है कि लोच-जैसे एक कायक्लेश तप के लिए साधक को अहिंसा, सत्य आदि महाव्रत रूप मौलिक धर्मसाधना से भ्रष्ट कर देना, कोई अच्छी बात नहीं है। इसलिए कल्पसूत्र आदि प्राचीन ग्रंथों में कहा है, कि यदि भिक्षु लोच करने में समर्थ नहीं है और वर्षावास की आषाढ़ी पूर्णिमा आ जाए तो क्या करना चाहिए? असमर्थ को भी यह रात्रि नहीं लांघनी है। वर्षा में शिर पर केश नहीं रहने चाहिए। अत: ग्लान-बीमार या बालक आदि असमर्थ को उस्तरे से शिर मुंडा लेना चाहिए, या कैंची से बाल कटवा लेने चाहिए। असमर्थ यदि ऐसा करता है तो कोई आपत्ति नहीं है। यह अपवाद मार्ग है। अपवाद में प्रायश्चित्त भी नहीं होता है। प्रायश्चित्त 'दप्पिया प्रतिसेवना' का होता है, 'कप्पिया प्रतिसेवना' का नहीं। इसके लिए निशीथ भाष्य, व्यवहार भाष्य एवं बृहत्कल्प भाष्य आदि सुप्रसिद्ध प्राचीन आचार ग्रंथ देखे जा सकते हैं। ऊपर की पंक्तियों में जो कुछ लिखा गया है, उसके लिए मूल प्रमाण इस प्रकार हैं वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जोसवणाओ गोलोमप्पमाणमित्ते वि केसे तं रयणिं उवायणावित्तए। अजेणं खुरमुंडेणं वा लुक्कसिरएणं वा होयव्वं सिया.... -कल्पसूत्र 9-57 -पर्युषणातः परम्-आषाढ़ चातुर्मासकादनंतरं गोलोमप्रमाणा अपि केशा न स्थापनीया, आस्तां दीर्घाः .... असमर्थोऽपि तां रात्रिं नोल्लंघयेत्.... केशेषु हि अप्कायविराधना, तत्संसर्गाच्च यूकाः संमूर्च्छन्ति, तत कण्डूयमानो हन्ति, शिरसि नखक्षतं वा स्यात्.... यदि चासहिष्णुर्लोचे कृते ज्वरादिर्वा स्यात्, कस्याचित् बालो वा रूद्याद्, धर्मं वा त्यजेत्, ततो न तस्य लोचः, इत्याह अज्जेणं खुरमुंडेणं वा... पर्युषण और केशलोच 141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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