Book Title: Paryushan Aur Kesh Loch
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 6
________________ यस्तु क्षुरेणाऽपि कारयितुमसमर्थो व्रणादिमच्छिरा वा तस्य केशाः कर्ता कल्पनीयाः ....। कल्पसूत्र सुबोधिका 9-57 अपवादतो ग्लानादिना क्षुरमुण्डनेन उत्सर्गतो लुचिताशिरोजेन इत्यर्थः। ___-कल्पलता 9-57 अपवाद के संबंध में कल्पसूत्र के निर्माता चतुर्दशपूर्वी, श्रुतकेवली आचार्यदेव भद्रबाहु स्वामी का उल्लेख ऊपर किया है। मूल पाठ के स्पष्टीकरण के लिए कल्पसूत्र की सुबोधिका और कल्पलता नामक सुप्रसिद्ध टीकाओं के उद्धरण भी दिए हैं। टीकाकारों ने वर्षाकाल में लोच करने के हेतुओं का, तथा लोच न करने के अपवादों का जो उल्लेख किया है, वह उनका अपना मनगढंत नहीं है। जैन वाङ्मय के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ निशीथभाष्य और उसकी विशेष चूर्णि के आधार पर ही टीकाओं का उक्त विवेचन है। प्रमाण स्वरूप भाष्य और चूर्णि का पाठ देखना हो तो वह इस प्रकार है वासासु लोमए अकज्जते इमे दोसाणिसुदंते आउबधो, उल्लेसु, य छुप्पदीउ मुच्छति। ता कंडूय विराहे, कुज्जा व खय तु आयाते।। -निशीथ भाष्य, 3212 आउक्काए णिसुढंते आउविराहणा, उल्लेसु य बालेसु छप्पयाओ समुच्छंति, कंडुअंतो वा छप्पदादि विराहेति, कंडुअंतो वा खयं करेज्जा–तत्थ आय–विराहणा __-निशीथ विशेष चूर्णि कत्तरि-छुर-लोए वा, वितियं असहु गिलाणे या -निशीथ भाष्य 3214 -वितियपदेणं लोयं न कारवेज्जा। असहू लोयं न तरति अधियासेउ सिरोरोगेण वा, मंदचक्खुणा वा लोयं असहतो धम्मं छड्डेज्जा। गिलाणस्स वा लोओ कज्जति, लोए वा करेंते गिलाणो हवेज्ज। -विशेष चूर्णि 142 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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