Book Title: Paryushan Aur Kesh Loch Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf View full book textPage 9
________________ रहूँगा, वर्षाकाल व्यतीत करूँगा। यदि उस दिन ऐसा मकान न मिले, तो वर्षावास की घोषणा न करे, क्योंकि फिर गृहस्थ सोचेगा कि साधु जी यहाँ रह गए हैं, अतः इस मकान को ठीक-ठाक कर लें। गृहस्थ साधु के निमित्त मकान की लिपाई-पुताई आदि का आरंभ करेगा, तो वह साधु के लिए औद्देशिक होगा, फलतः साधु को दोष लगेगा। इसलिए पर्युषण की, अर्थात् वर्षावास की घोषणा न करे, और इस बीच उसी क्षेत्र में या आसपास के अन्य क्षेत्र में किसी अच्छे व्यवस्थित मकान की तलाश में रहे। यदि इस बीच मकान मिल जाए तो श्रावण वदी पंचमी को, फिर श्रावण वदी दशमी को, फिर पाँच दिन बाद अमावस्या को पर्युषण करे। तब भी यदि न मिले, तो फिर पाँच-पाँच दिन की वृद्धि करते हुए अंत में पचास दिन के बाद भादवा सुदी पंचमी को तो अवश्य ही पर्युषण कर लेना चाहिए। मकान न मिले तो वृक्ष के नीचे ही शेष वर्षावास बिता देना चाहिए, क्योंकि तब वर्षा कम हो जाती है, अतः वृक्ष के नीचे भी अच्छी तरह रहा जा सकता है। ___ कल्पसूत्र में उल्लिखित एक महीना बीस रात्रि वाले पर्युषण संबंधी अपवाद का स्पष्टीकरण करते हुए कल्पसूत्र के ही समाचारी प्रकरण के निम्नोक्त पाठ में लिखा है, जिसका कि मैंने ऊपर की पंक्तियों में वर्णन किया है: 'जओणं पाएणं अगारिणं अगरायं कडियाई उकंपियाई, छन्नाई, लित्ताई, गुत्ताई, घुट्टाइं, मट्ठाई, संपधूमियाई, खाओदगाई, खायनिद्धमणाई, अप्पणो अट्ठाए कडाइं, परिभुत्ताइं परिणामियाइं भवन्ति, से तेण्डेणं एवं वुच्चइ....' -कल्पसूत्र 9 1 2 निशीथ सूत्र की प्राचीन विशेष चूर्णि (315) में यही स्पष्ट शब्दों में बताया गया है। - सेसकालं पज्जोसर्वेताणं अववातो। अववाते वि सवीसति रातिमासातो परेण अतिक्कमेउं ण वट्टति। सवीसतिरातिमासे पुण्णे जति वासखेत्तं ण लब्भति, तो रुक्खहेट्ठा वि पज्जोसवेयव्वं। तं च पुण्णिमाए पंचमीए दसमीए एवमादिपव्वेसु पज्जोसवेयव्वं, णो अपव्वेसु। अर्थात् आषाढ़ पूर्णिमा के अतिरिक्त शेषकाल में पर्युषण करना, अपवाद है। और यह अपवाद भी एक महीना और बीस रात्रि के काल को अतिक्रमण पर्युषण और केशलोच 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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