Book Title: Paryushan Aur Kesh Loch Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf View full book textPage 8
________________ अर्थ ही है, वर्षा। अतः पर्युषण आषाढ़ पूर्णिमा का शास्त्र सम्मत है। जैन परंपरा के जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा वर्ष का अंतिम दिन है और श्रावण वदी प्रतिपदा नये वर्ष का प्रथम दिन है। भादवा सुदी पंचमी को किस शास्त्र के अनुसार कौन-सा वर्ष पूरा होता है? कोई नहीं। दिन पूरा होने तक दैवसिक, रात्रि पूरी होने पर रात्रिक, पक्ष पूरा होने पर पाक्षिक, चार मास पूरे होने पर कार्तिक पूर्णिमा आदि को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किया जाता है। इसी प्रकार संवत्सर अर्थात् वर्ष पूरा होने पर संवत्सरी प्रतिक्रमण किया जाता है। और जैन परंपरा के अनुसार वर्ष पूरा होता है-आषाढ़ पूर्णिमा को। अतः यही दिन पर्युषण का, संवत्सरी का तथा संवत्सरी-प्रतिक्रमण का है। निशीथ भाष्य (3216-17) की चूर्णि करते हुए आचार्य जिनदास गणी ने स्पष्ट कहा है कि पर्युषण पर्व में वार्षिक आलोचना होनी चाहिए। उस समय किया जानेवाला अष्टम (तेला) तप, उपवास की अक्षमता, रोग तथा सेवा आदि से संबंधित अपवाद स्थिति को छोड़कर उत्सर्गतः अवश्य एवं अनिवार्य कर्तव्य है। यह वर्षाकाल के प्रारंभ में मंगल रूप होता है। उक्त भाष्य (3208) की ही चूर्णि में अन्यत्र लिखा है कि 'वरिसंते उववासो कायव्वो'-अर्थात् वर्ष के अंत में अवश्य उपवास करना चाहिए। निशीथ भाष्य (3153) में शब्दशः उल्लेख है-'आसाढ़ी पूण्णिमोसवणा।' उक्त भाष्य की चूर्णि में लिखा है-आषाढ़ पूर्णिमा को पर्युषण करना, उत्सर्ग सिद्धांत है-'आसाढ़पुण्णिमाए पज्जोसवेति, एस उस्सग्गो'। इत्यादि प्रमाणों से स्पष्ट प्रमाणित हो जाता है कि प्राचीन काल में पर्युषण आषाढ़ पूर्णिमा को ही किया जाता था। अब प्रश्न है कि कल्पसूत्र और समवायांग में सवीसइराए मासे वइकते वासावासं पज्जोसवेइ' जो पाठ है, वह क्या है? वह पाठ तो कहता है कि आषाढ़ पूर्णिमा से एक महीना और बीस रात्रि बीतने पर पर्युषण करना चाहिए, जैसा कि आजकल किया जाता है। उक्त शंका के समाधान में कहना है कि यह उल्लेख अपवाद स्थिति का है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन यदि चातुर्मास के लिए मकान ठीक तरह का मिल जाए, जो ऊपर से छाया हुआ हो, लिपा हुआ हो, टपकता न हो, जल निकालने के लिए नाली आदि की व्यवस्था ठीक हो। गृहस्थ ने पहले से ही अपने लिए मकान को वर्षाकाल में रहने के योग्य तैयार कर रखा हो, तो भिक्षु उसी दिन अपना वर्षावास घोषित कर दे कि मैं यहाँ चार महीने 144 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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