Book Title: Parshvabhyudayam Author(s): Jinsenacharya, Rameshchandra Jain Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना ALI वर्णन कर वह उन्हें स्वर्ग प्राप्ति के लिए लालायित करने की चेष्टा करता है। इस प्रकार अनेक उपसर्गों के बीच जब भगवान् धैर्य से व्युत नहीं होते हैं तो वह उनको मारने के लिए एक पहाड़ उठाता है। इसी समय धरणेन्द्र और पगावती भगवान की पूजा के लिए आते है। धरणेन्द्र भगवान को घेरकर अपने फणों के ऊपर उठा लेते हैं और पठमावती वचमय छत्र तानकर खड़ी हो जाती है । इसी समय भगवान् को केवलजान हो जाता है। आकाश में सुरदुन्दुभि बजती है, दिशायें निर्मल हो जाती है। यह सब देखकर शम्बरासुर भागने लगता है। किन्तु धरणेन्द्र उसे अभय देकर रोकते है और उसके पूर्वजन्मों की याद दिलाते है । शम्बर अपने कृत्यों पर पश्चाताप करता है और तीर्थकर का गुणगान करता है। इस काथ्य में शम्बर को यक्ष के रूप में चित्रित किया गया है। युग में मृत्यु को पात गाय को समापार मेल के मा में कल्पना करता है । भगवान् पाश्वनाथ को यह परामर्श देता है कि युद्ध में मृत्यु प्राप्त कर मेष रूप धारण कर वे अलकानगरी जॉय और अपने पूर्वजन्म की पत्नी वसुन्धरा जो कि इस समय किन्नरी हुई है. से जाकर मिलें तथा उसकी वियोगाग्नि को शान्त करें। पाभ्युिदय में रामगिरि से अलका तक मेष के जाने के मार्ग का वर्णन किया गया है । रामगिरि से चलकर मंघमाल नामक क्षेत्र पर पाएगा। इसके बाद उत्तर को ओर चलकर उसे आम्रकूट पर्वत मिलेगा । यहाँ से आगे चलकर विन्ध्याचल के चरणों में फैली हई नर्मदा का दर्शन होगा। अनन्तर पर्वतोंपर्वतों पर होते हुए मेध का दशार्णदेश में प्रवेश होगा । दशार्ण देश में पहुंचने पर वह विदिशा नगरी में जायगा । विदिशा से क्रमशः नीच पर्वत, उज्यजिनी, देवगिरि, दशपुर, कुरुक्षेत्र, कनखल, क्रौञ्चद्वार तथा कैलाश पर्वत जायगा । ३. सद्यः सीरोकषणमुरभिक्षेत्रमालामालम् । पार्खाभ्युदय १६३ ४, बक्षत्यध्याश्रमपरिगसं सानुमानान्न फूटः । पावा० ११६६ ५. रेवां द्रक्ष्यस्यपलविषमे विध्यपादे विशोर्णाम् । पात २७५ ६. कालक्षेपं ककुभसुरभी पर्वते पर्वते ते । पाश्वी १८६ स्त्रस्यासन्ने परिणलफलश्यामजम्यूबनान्ताः । संपरस्यन्ते कतिपयदिनस्यायिहंसा दशाणा । पार्वा १५९१, १२ ७. नीराख्यं गिरिमधिवसेः । पा० १२९७ सौधोत्सङ्गप्रणयविमुखो मा स्म भूरुज्जयिन्याः ।। पार्वा० १५१०३ देवपूर्व गिरिम् । पार्श० २।३० पात्रीकुर्वन्दशपुरवधूने कौतूहलानाम् ॥ पाश्र्वा० २५४४Page Navigation
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